Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 324
________________ 290 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति जैन ग्रन्थ कल्पसूत्र से ज्ञात होता है कि व्यापार तथा उद्योग की सुविधा के लिए तिराहे, चौराहे, सड़क और बाजार बने हुए थे। व्यापारियों के कारवां का उल्लेख भी प्राप्त होता है।।18 समाज का एक वर्ग उच्च विद्याओं के द्वारा आजीविका प्राप्त करता था। यह विद्याएं इस प्रकार थीं-छिन्न-छिद्र विद्या, स्वर सप्त-स्वर विद्या, मौन, अन्तरिक्ष, स्वप्न, तक्षण, दण्ड, वास्तुविद्या, अंगविकार, स्वर विज्ञान, आयुर्वेद ज्ञान तथा मन्त्रज्ञान।।17 शुभाशुभ बताकर18 तथा अध्यापन'19 के द्वारा भी व्यक्ति धनार्जन करते थे। मन्त्र और विद्या द्वारा चिकित्सा!20 तथा औषधि निर्माण!21 से भी आजीविका चलाई जाती थी। लुहार, कुम्हार आदि कर्मकार लुहारों कम्मारों, कर्मार, का व्यापार उन्नति पर था। यह लोग खेती बारी के लिए हल और कुदाली तथा लकड़ी काटने के लिए फरसा, वसूला, आदि बनाकर बेचा करते थे।।24 यह करपत्र, करबत, कवच, आरा आदि शस्त्र, तलवार, भाले और लोहे के डण्डे, जुए वाले जलते लोहे के रथ, तेजधार वाले छुरे - छुरियां, कैंची, कुल्हाड़ी, फरसा,125 कुंदकुंभी पकने के लोह पात्र आदि का निर्माण करते थे।।26 लोहे, वपुस, ताम्र, जस्ते, सीसे, कांसे, चांदी, सोने, गणि, दन्त, सींग, शंख, बज्र आदि से बहुमूल्य पात्र बनाये जाते थे।।27 ताम्बे के बरतन को चन्दालग कहते थे।128 इस्पात से साधुओं के उपयोग में आने वाले क्षुर पिप्पलग सुई129 आरा, नहनी आदि बनाये जाते थे। लुहार की दुकान समर कहलाती थी।।30 लोहे के हथौड़े से कूटते, पीटते, काटते और उससे उपयोगी वस्तुओं को तैयार करते थे।।3। गन्धी और चित्रकार मनोहर गन्ध 32 तथा मनोहर चित्र'33 तैयार करते थे। अस्त्र-शस्त्र तथा अन्य उपकरण जैन सूत्रों में प्रसंगवश अनेक उपकरणों तथा अस्त्र शस्त्रों का उल्लेख हुआ है, जिससे ज्ञात होता है कि इन शस्त्रों का निर्माण कारखानों में विशाल पैमाने पर होता था। ढाल तथा कवच'34 सेना की आवश्यकता पूर्ति हेतु बनते थे। चक्र, अंकुश'35 तथा गदा'36 अन्य उपकरण थे जो युद्ध में काम आते थे। वज्र'37 तलवार, मल्लि, लोहदण्ड युद्ध में तथा आततायियों से निपटने में काम आते थे।।38 युद्ध के लिए लौह रथों का निर्माण होता था। 9 अपराधियों, दासों और कर्मकरों पर चाबुक 40 से मार लगाई जाती थी अत: चाबुकों का निर्माण और विक्रय होता था। मुगदर, भुसुण्डी, शूल तथा मूसला41 का प्रयोग अपराधियों को

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