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आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 293
आभूषण व्यवसाय
इस काल में सुनार तथा सर्राफा प्रगति के शिखर पर था। जैनसूत्रों से ज्ञात होता है कि स्त्रियां तथा पुरुष आभूषण धारण करते थे। चौदह प्रकार के आभूषणों का उल्लेख जैनसूत्रों में मिलता है-हार अट्ठारह लड़ी वाला198 अर्धहार-नौ लड़ी का हार एकावलि एक लड़ी का हार, कनकावलि, रत्नावलि, मुक्तावलि, केयूर, कडय, कड़ा, तुडिय बाजूबन्द मुद्रा अंगूठी, कुण्डल, उरसूत्र, चूड़ामणि और तिलक।199 इस प्रकार हार, अर्धहार त्रिसरय तीन लड़ी का हार प्रलंब नाभि तक लटकने वाला हार कटिसूत्र करधौनी, ग्रैवेयक गले का हार, अंगुलियक अंगूठी का कचाभरण केश में लगाने के अलंकरण मुद्रिका, कुण्डल, मुकुट, वलय वीरत्वसूचक कंगण200, अंगद बाजूबन्द, पादप्रलंब पैर तक लटकने वाला हार201 मुरवि कान की वाली,202 आदि आभूषण पुरुषों द्वारा धारण किये जाते थे। नुपूर, मेखला, हार, कडग खुद्दय अंगूठी वलय, कुण्डल, रत्न तथा दीनारमाला203 स्त्रियों के आभूषण थे। __अन्य आभूषणों में कुण्डल,204 मुकुट,205 चूड़ामणि,206 करधनी,207 मुक्ताहार,208 कर्णफूल209 थे। बाहुवलय, कदग, तुदिय, कैडूर केयुर कंकण, त्रुटिका, बाहुरक्षिता तथा अंगद जैसे आभरण210 पहनने का चलन था।2।।
हार कर्णाभरण, बालियां, बाजूबन्द तथा मुकुट प्रचलित थे।212 मोतियों के हार तथा कानों में हिलते झुमके पहने जाते थे जो कन्धों को छूते थे।213
धनिक वर्ग आभूषण धारण करने के अतिरिक्त चांदी के प्यालों,214 का उपभोग करते थे। मणि और रत्नजटित तलों वाले प्रासाद और गवाक्षों से युक्त अट्टालिकाओं से नगर के तिराहों और चौराहों का अवलोकन किया करते थे।15 उनके पलंग स्वर्णजटित होते थे तथा सोने के शृंगार झारी से जल पीते थे।216
खनिज उद्योग
आगम काल में खानों में लोहा, रांगा, ताम्बा, जस्ता, सीसा, कांसा, चांदी, हिरण्य अथवा रुप्य, सोना सुवर्ण मणि और रत्न उपलब्ध थे।217 भारत के व्यापारी कलियद्वीप से हिरण्य, सुवर्ण, रत्न, वज्र तथा बहुमूल्य धातुएं नाविक मार्गों से भर कर भारत में लाते थे।218 ___ खनिज पदार्थों में लवण (नमक) ऊस (साजी) माटी गेरु, हरताल, हिंगलुक सिंगरफ मणसिल (मनसिल), सासग संडिय (सफेद मिटटी), सारट्ठिय और अंजन के नाम ज्ञात होते हैं।19 चन्दन, सोड़ा, मसारगल्ल, लाल खड़िया, हंसगर्भ, पुलाक तथा गन्धक अन्य धातुएं थीं।220 सिन्दूर, लाल हरताल, सुरमा, अभ्रपटल