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आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 287
फसल पकने पर धान्य घड़ों में भरकर रखा जाता था फिर यह घड़े सुरक्षा की दृष्टि से लीप-पोत कर, मोहर लगा कर कोठार में रख दिये जाते थे। 6 सूत्रकृतांग में ओखली तथा मूसली की चर्चा आती है जिसका प्रयोग सम्भवतः धान्य कूटने के लिए भी किया जाता होगा।” गंजशाला में धान्य कूटे जाने की पुष्टि जैन ग्रन्थ निशीथसूत्र से भी होती है।
सेब, अंगूर, खजूर, नारियल, इमली, चकोतरा, उन्नाव, तिन्दुक, बिल्व, श्रीपर्णी तथा किंपाक फलों के साथ फलों में आम, अनार,40 तथा बेर" की चर्चा मिलती है। विभिन्न प्रकार की सब्जियों में आंवला,43 आलू, मूली, अदरक, प्याज, लहसुन तथा लौकी के विषय में ज्ञात होता है।
पुष्पों में मन्दार, चम्पक, अशोक, नाग, पुन्नाग, प्रियंगु, शिरीष, मुद्गर, मल्लिका, यूथिका, अंकोला, कोरान्तक, दमनक, नवमालिका, बकुल, तिलक, वारान्तिका, नफर, पाटल, कन्द, अतिमुक्त. आम्रबेर आदि की चर्चा प्राप्त होती है। यह सभी पुष्प सुगन्धियुक्त थे तथा इन्हें आभरण बनाकर शरीर पर धारण किया जाता था तथा इनकी सुगन्ध इत्र के रूप में भी प्रचलित थी। ऐसा लोक विश्वास था कि अशोक की कली तभी चटकती है जब सजी धजी युवती का पांव छू जाये तथा बकुल तभी परिपूर्ण यौवन से सराबोर होता है जब मदिरा से सींचा जाता है।47 केतकी,48 अलसी के पुष्प, कुन्द पुष्प, कमल, शिरीष, कुमुद रक्त कमल लोधपुष्प आदि का तथा जल कुमुदनी का नाम भी जैन सूत्रों में प्राप्त होता है।
अन्य वनस्पति
जैन ग्रन्थों में अनेक वृक्ष, पौधे, गुच्द, घास, झाड़ी तथा तृणों के नाम मिलते हैं जिनमें कुछ की पहचान नहीं हो पायी है किन्तु उनके प्राकृत नाम ज्ञात हैं। इस सूची में लता, गुल्म, वल्लि, जड़ी बूटियां तथा झाड़ियां भी सम्मिलित हैं :
काकजंघा–धुंघची या गुंजा का वृक्ष, सुदर्शना7-जंबुवृक्ष का नाम, शाल्मलि वृक्ष8-सेमल का वृक्ष, अशोक तेल कण्टक, अलसी, कुन्द2, सण,