________________
286 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति आर्थिक संस्थाओं के विषय में भी प्रसंगवश सूचनाएं प्राप्त होती हैं।
कृषि व्यवस्था तथा प्रमुख पैदावार
जैन धर्म यद्यपि विशेष रूप से अपने अनुयायियों को कृषि कर्म न करने का आदेश देता है ताकि हिंसा का पूर्ण परित्याग हो सके किन्तु कृषि कर्म की उपेक्षा सम्भव नहीं थी। सम्भवत: जैनेत्तर सम्प्रदाय के व्यक्ति प्रमुख रूप से कृषि कर्म अंगीकार करते थे और जैन अपवाद स्वरूप। जैनसूत्रों से ज्ञात होता है कि आगम काल में कृषि कार्य अति विकसित था।
जैनसूत्रों में सत्रह प्रकार के धान्यों का उल्लेख प्राप्त होता है-व्रीहि (चावल), यव (जौ), मसूर, गोधूम (गेहूं), मुद्ग (मूंग), माष (उड़द) तिल , चणक (चना), अणु (चावल की एक किस्म), प्रियंगु (कंगन), काद्रव (कोदों)", अकुष्टक (कुटटु), शालि (चावल), आढकी, कलाय (मटर), कुलत्थ (कुलथी),12 और सण (सन)।
चावल शालि की खेती बहुतायत से होती थी। कलम शालि पूर्वीय प्रान्तों में उत्पन्न होता था। रक्तशक्ति महाशालि और गन्धशालि इसकी बढिया किस्में थीं। कुल्माष, उड़द, बुक्कस, पुलाक तथा मंथु, जौ और चावल' प्रमुख पैदावार थीं। बैंगन तथा ककड़ी सब्जियों में उत्पन्न होती थीं। केला, ईख, कुकुरमुत्ता, जौ, चना, आलू, मूली, शृंगबेर, अदरक की पैदावार के विषय में उत्तराध्ययन से ज्ञात होता है। __ अनेक प्रकार के कन्दमूल फल उस समय उत्पन्न होते थे जैसे हिरिलीकन्द, सिरिलीकन्द, जावईकन्द, केद, कदलीकन्द, कुस्तुम्बक। लोही, स्निहु, कुहक, वज्रकन्द, सूरणकन्द, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुढ़ी हरिद्रा आदि जमीकन्द थे।" प्याज तथा लहसन की भी खेती होती थी। आलू, मूली, अदरक भूमि के अन्दर उत्पन्न होने वाली अन्य सब्जी थीं।22
नारियल, ईख,24 कुकुरमुत्ता अन्य पैदावार थीं। इन्हें क्रमश: लतावलय, पर्वज और कुहण श्रेणी के अन्तर्गत रखा गया है।
कच्चे आम, पके आम, कच्चे कपित्थ, पके कपित्थ, खजूर तथा द्राक्षा28 का उल्लेख भी प्राप्त होता है।
तिल्ली, तिल, जिगरफली, निष्पाव, कुलट्ठ, आल्सिन, एलामिच्छ,29 (इलायची), सरसों, सफेद सरसों,' प्रमुख तिलहनें थी।
अन्न भण्डारों में भर कर रखा जाता था।2 मसालों में कालीमिर्च,33 हरिद्रा (हल्दी),34 सरसों, हरिताल, त्रिकटु, गजपीपल का उल्लेख प्राप्त होता है। गन्ना प्रमुख फसलों में से था। इसे कोल्हुओं महाजन्त कोल्लुक में पेरा जाता था।