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84 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
इसी तरह आत्माद्वैत भी युक्ति रहित है क्योंकि इस जगत में जब एक आत्मा के सिवाय दूसरी कोई वस्तु है ही नहीं, तब फिर मोक्ष के लिए प्रयत्न करना, शास्त्रों का अध्ययन करना आदि बातें निरर्थक ही सिद्ध होंगी तथा सारे जगत की एक आत्मा मानने पर जगत में जो प्रत्यक्ष विचित्रता देखी जाती है, वह भी सिद्ध नहीं हो सकेगी। बल्कि एक के पाप से दूसरे सब पापी और एक की मुक्ति से दूसरे सब की मुक्ति एवं एक के दुख से दूसरे सब को दुखी मानना पड़ेगा, जोकि आत्माद्वैतवादी को अभीष्ट नहीं है । अतः युक्तिरहित आत्माद्वैतवाद को भी मिथ्या ही समझना चाहिए।253
ब्राह्मण परिव्राजक
सूत्रकृतांगसूत्र में ऐसी चर्चा आती है कि महावीर भगवान से मिलने जाते समय मार्ग में ब्राह्मण आर्द्रक मुनि को रोक कर कहते हैं कि उन्होंने गोशालक मत और बौद्धमत का खण्डन करके बहुत अच्छा किया क्योंकि दोनों वेद बाह्य हैं। इसी तरह आर्हत मत भी वेद बाह्य है। अतः खण्डनयोग्य व त्याजनीय है । 254 जो क्षत्रियों में श्रेष्ठ है उसके लिए वर्णों में श्रेष्ठ ब्राह्मणों की सेवा करना ही धर्म है, शूद्रों की नहीं। अतः यज्ञ, याग का अनुष्ठान व ब्राह्मणों की सेवा ही करणीय है। ब्राह्मण सेवा का बड़ा महत्व है। वेदपाठी, षट्कर्मपरायण, शोचाचारक, सदा स्नान करने वाले दो हजार स्नातक ब्रह्मचारी ब्राह्मणों को जो व्यक्ति प्रतिदिन भोजन कराता है वह महान पुण्य का उपार्जन करके स्वर्ग में देवता बनता है। 255
आर्द्रक्रमुनि256 इसका प्रतिवाद करते हुए कहते हैं कि वैडालिकवृत्ति वाले दो हजार स्नातक ब्राह्मणों को प्रतिदिन भोजन कराने वाला कुपात्रदानी है। ऐसे ब्राह्मण बिल्लियों के समान क्षत्रिय कुलों में घूमते रहते हैं। इसीलिए इनका नाम 'कुलालय' पड़ा है। कुलालय का अर्थ होता है जो मांसादि भोजन के लिए क्षत्रिय कुलों में पड़े रहें। अत: दूसरों के श्रम पर आनन्द मानने वाले, निन्दनीय जीविका वाले ऐसे ब्राह्मण कुपात्र हैं, तथा शील रहित हैं। इन्हें भोजन कराने वाला व्यक्ति मांसभक्षी, वज्रचंचुपक्षियों से परिपूर्ण तथा भयंकर वेदनायुक्त नरक का गामी होता है। हिंसा प्रधान धर्म, विवेकमूढ, व्रतरहित, शीलहीन एक ब्राह्मण को जो षट्कायिक जीवों का उपमर्दन करके भोजन कराता है, वह मरकर अधमदेव भी नहीं होता। तब दो हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पाप का तो अनुमान ही क्या है ?