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278 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
क्योंकि एक बार कुसग्गपुर का प्रसाद रसोइये की लापरवाही से जल गया जो सेणिय ने
मात्र एक बम्भा ड्रम पर उठाया था। 28. यद्यपि बौद्ध परम्परा इन युद्धों का कारण आर्थिक व राजनीतिक दोनों ही मानती है जो कि
मूलत: गंगाघाटी के पार एक रत्न की खान और बन्दरगाह को लेकर थी जिसे मगध हथियाना चाहता था किन्तु युद्ध की घटनाएं वही हैं जो जैन ग्रन्थों में हैं। देखें दीर्घ निकाय
महापरिनिब्बान सुतन्त, अट्ठकथा : दी एज आफ इम्पीरियल यूनिटी, पृ० 241 29. कल्पसूत्र एस० बी०ई०, पृ० 2661 30. वही, तथा विस्तार के लिए देखें दी एज आफ विनय, पृ० 2061 31. केचिद्देशा गणाधीना: के चिद्राजाधीनाः। अवदानशतक-2, पृ० 103। 32. प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, अल्तेकर, पृ० 109। 33. उत्तराध्ययन, 15/9 टिप्पण चन्दनाजी पृ० 4351 34. आचारांगसूत्र, 1/3/1701 35. अभिषिक्त राजन्य - पाणिनि, 6/2/341 36. अरायणि का गणरायाण वा जवरायाण वा
दोरज्जणि वा, वेरज्जणि वा, विरुद्धरज्जणि वा। - आचारांगसूत्र, 2/3/1/9। 37. प्राचीन भारत के गणतन्त्र राज्यों का वृत्तान्त उत्तर पश्चिम में मुख्यत: ग्रीक लेखकों और
उत्तरपूर्व में बौद्धग्रन्थों से ज्ञात होता है। पाणिनि, कात्यायन पतंजलि जयादित्य और वामन आदि वैयाकरणों से भी बहुत से शब्दों की व्युत्पत्ति सिद्ध की गयी है। महाभाष्य में भी दो अध्यायों में इन राज्यों के विधान और उनके गुण दोषों की सहानुभूति पूर्वक चर्चा की गई है।-महाभारत, 12/81/107: अर्थशास्त्र में भी मुख्यत: गणों और संघों की शक्ति भंग
करने के उपायों पर विचार किया गया है। 38. दी सोशल आर्गेनाइजेशन इन नार्थ ईस्ट इण्डिया इन बुद्धाज टाइम, पृ० 1371 39. मैकक्रिडल, इन्वेजन आफ अलेक्जेंडर दी ग्रेट, पृ० 1811 40. जातक, 1,504, द्र० स्टडीज इन दी भगवतीसूत्र, पृ० 1351 41. जात्या च सदृशाः सर्वेकुलेन सदृशास्तथा।-महाभारत, 12/107/29। 42. वही, 12/107/20-211 43. द्र० हिस्ट्री आफ जैन मोनैकिज्म, पृ० 1461 44. द्र० जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पृ० 33। 45. द्र० जी०एस०पी० मिश्र, “समरिफलैक्शन्स आफ अर्ली जैन एण्ड बुद्धिस्ट
मोनैकिज्म', जिज्ञासा, अंक 3-4, जुलाई अक्टूबर, 19741 46. द्र० डाक्ट्रिन आफ दी जैनज, पृ० 252 : स्थानांगवृत्ति, पृ० 252: ठाणं लाडनूं
संस्करण, पृ० 10121 47. बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 55 तथा हिन्दू पालिटी, पृ० 40-421 48. प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, पृ० 941 49. वही 50. महावग्ग, 3/3/6: दीर्घ निकाय, II एस०बी०ई०, पृ० 821 51. गोकुलदास डे, डेमोक्रेसी इन अर्ली बुद्धिस्ट संघ, पृ० 28। 52. द्र० प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, पृ० 951 53. चुल्लवग्ग, 4/14/241 54. आर०सी० मजूमदार के०पी० जायवाल के उपरोक्त मत में थोड़ा परिवर्तन व संशोधन