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राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 277
10. भगवतीसूत्र अभयदेवकृत, प्रथम उद्देशक शतक 15 द्र० स्टडीज इन दी भगवती सूत्र:
पृ० 62 तथा उवासगदसाओ (हार्नले) परिशिष्ट। 11. समुत्तर का समीकरण पश्चिम बंगाल के जिले मिदनापुर तथा बांकुरा से दिया गया है। -
द्र० मार्कण्डेय पुराण, पृ० 3571 अंगुत्तरनिकाय पालिटेक्स्ट सोसायटी -1 213, 1, 252, 256, 260 तथा दी एज आफ विनय, पृ० 204। महावस्तु 1/34 में भी यही सूची मिलती है किन्तु इसमें गन्धार और कम्बोज के स्थान पर शिवि तथा दशार्ण पंजाब और राजस्थान का उल्लेख मिलता है। जहां तक छठी शताब्दी ई०पू० के राजनीतिक परिवेश का प्रश्न है अंगुत्तर निकाय की सूची को अधिक प्रामाणिक माना जाता है। द्र० एव०सी०राय चौधरी, पोलिटिकल हिस्ट्री
आफ एन्शिएंट इण्डिया, पृ० 861 13. स्टडीज इन दी भगवती सूत्र, पृ० 63। 14. भगवतीसूत्र अभयदेव, 7/9/300-3011 15. उत्तराध्ययन चन्दनाजी 9/15 टिप्पण पृ० 435। कल्पसूत्र में इसे ठगणरायाणोंठ लिखा है
अत: वृहद्वृत्ति में भी उक्त शब्द की व्याख्या करते हुए शान्त्याचार्य लिखते हैंगणामल्लादि समूहाः। - जैन कल्पसूत्र 1281
निर्यावलिसूत्र, पृ० 27 वारेन द्वारा संपादित 16. कुणिक विदेहपुत्र को भगवतीसूत्र में असोगवनचन्द्र या असोगचन्द कहा गया है क्योंकि
जन्म के पश्चात् उसे अशोक उद्यान में फेंक दिया गया था। ओवाइय सूत्र 7 पृ० 20 के अनुसार उसे गोबर के ढेर पर फेंक दिया गया था जहां उसकी कनिष्ठा उंगली मुर्गे ने खाली अत: उसका नाम कुणिक पड़ गया। निर्यावलिसूत्र के अनुसार कुणिक वैशाली के राजा चेटक की पुत्री चेल्लणा का पुत्र था। वैशाली विदेह का भाग थी। इसलिए उसे विदेहपुत्र कहा गया है। बौद्ध परम्परा के अनुसार निकायों में भी कुणिक को विदेहपुत्र ही माना है यद्यपि बुद्ध घोष उसे विख्यात राजकुमारी का पुत्र मानते हैं। जातक उनकी मां को कोसल की राजकुमारी महाकोसल की पुत्री तथा राजा प्रसेनजित का भांजा बताते हैं। देखें, थुस्सजातक 338 तथा भूमिका-जातक 373 संयुक्त निकाय बुक आफ काइन्डर्ड सेमिंग्स 110 किन्तु इसी पुस्तक की प्रथम जिल्द में पृ० 38 पर इसे भद्रा का पुत्र कहा है जबकि डिक्शनरी आफ पाली प्रोपरनेम्स में एक तिब्बती लेखक उसकी माता का नाम वासवी बताता है। जो हो, जैन तथा बौद्ध परम्परा दोनों अजातशत्रु को ही कुणिक विदेहपुत्र मानती
17. जैनसूत्रज एस०बी०ई०जि० 22, पृ० 266 तथा जि० 45, पृ० 3391 18. वही। 19. भगवती सूत्र, अभयदेव 7/9/300-3011 20. वही। 21. वही, पृ० 300 : स्टडीज इन दी भगवती सूत्र, पृ० 661 22. भगवती सूत्र, अभयदेव 7/9/3001 23. वही, 7/9/3011 24. कल्प के अन्त में प्रलय हो जाती है व पुनः सृष्टि का आविर्भाव होता है। 25. भगवती सूत्र, अभयदेव,7/9/3031 26. निर्यावलिसूत्र, 1 द्र० उवासगदसाओ हार्नले परिशिष्ट ।।, पृ० 7। 27. आवश्यक चूर्णि-II, पृ० 158, राजा सेणिय श्रेणिक बिम्बिसार नाम से जाना जाता था