Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 314
________________ 280 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति 81. वही, 501 82. उत्तराध्ययन, 2/38, सम्भव है कि शास्त्रकार की दृष्टि में अन्तिम मौर्य नरेश बृहद्रथ का उदाहरण समक्ष हो जिसके प्रज्ञादुर्बल होने के कारण सेनापति पुष्यमित्र ने समस्त सेना के समक्ष प्राण भी हरण कर लिए और राज्याधिकार भी। 83. वही, 11/23-241 84. वही, 22/5-61 85. वही, 22/41 86. श्रमण ट्रेडीशन, पृ० 8। 87. भगवद्गीता, 4/21 88. श्रमण ट्रेडीशन, पृ०8। 89. उत्तराध्ययन, साध्वी चन्दना, अ० 22, पृ० 223-241 व्रजमण्डल के सोरियपुर शौर्यपुर में राजा समुद्रविजय राज्य करते थे। जिनके अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि और दृढ़नेमि चार पुत्र थे। वासुदेव समुद्रविजय के सबसे छोटे भाई थे जिनके दो पुत्र थे कृष्ण और बलराम। जरासंध के आक्रमण के कारण यादव जाति के यह सब क्षत्रिय सौराष्ट्र पहुंचे और वहां द्वारिका नगरी का निर्माण कर एक विशाल साम्राज्य की नींव डाली। राज्य के प्रमुख श्रीकृष्ण वासुदेव हुए। कृष्ण के आग्रह पर उन्होंने भोगकुल के राजा उग्रसेन की कन्या राजीमती से विवाह करना स्वीकार किया किन्तु बरात में जाते समय वाद्यों के तीव्र निनाद और भोजन में मांस के विविध व्यंजन बनाने के लिए पिंजरों और बाड़ों में अवरुद्ध पशुपक्षियों के करुण क्रन्दन से उनका चित्त करुणा से व्याकुल हो गया। उन्होंने संत्रस्त पशुपक्षियों को मुक्त कराकर बिना विवाह किये ही वैराग्य धारण कर लिया। वाग्दत्ता राजीमती ने भी श्रमण दीक्षा स्वीकार कर ली। मुनि जीवनधारण कर अरिष्टनेमि तीर्थंकर हुए। 90. उत्तराध्ययन, 18/351 91. वही, 18/361 92. वही, 18/371 93. रामायण, 1/171 94. उत्तराध्ययन, 18/38-40 कुन्थुनाथ शायद काकुस्थ का अपभ्रंश है जो इक्ष्वाकु कुल में 25वें थे। जैकोबी की टिप्पणी, एस० बी०ई०, जि० 45, पृ० 85-861 95. उत्तराध्ययन, 18/411 96. वही, 18/421 97. वही, 18/431 98. वही, 18/441 99. वही, 18/46,47 100. वही, 18/48। 101. वही, 18/491 102. वही, 18/501 103. वही, 18/511 104. वही, चन्दनाजी, 19, पृ० 183-841 105. वही, अ0 131 106. वही, अ० 18।

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