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107. वही, 2018।
108. वही, 21/1-31 109. वही ।
110. वही, 22/11
111. वही, 18/7। 112. वही।
113. वही 9/491
राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 281
114. वही, 9/4।
115. द्र० भारत के प्राचीन अभिलेख, पृ० 102-31
116. उत्तराध्ययन, 9/201
117. वही, 9/18: द्र० भारत के प्राचीन अभिलेख, पृ० 103 | 118. वर्द्धमाणगिहाणी चूर्णि और टीका में इसका अर्थ स्पष्ट नहीं है। मोनियर विलियम्स ने इसका अर्थ वह घर जिसमें दक्षिण की ओर द्वार न हों किया है । - द्र० संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी, पृ० 926 : मत्स्यपुराण, पृ० 254 का भी यही मत है। वास्तुसार में घर के 64 प्रकार बताये हैं जिसमें तीसरा वर्धमान है। जिसके दक्षिण दिशा में मुखवाली गावीशाला हो । - उत्तरज्झयण सटिप्पण, पृ० 78 : डा० हरमन जैकोबी ने वराहमिहिर संहिता 53/36 के आधार पर माना है कि यह गृह समस्तगृहों में सुन्दरतम है । द्र० उत्तराध्ययनसूत्र एस०बी०ई०, पृ० 38 पादटिप्पण 1, वर्धमानगृह धनप्रद होता है। द्र० वाल्मीकि रामायण, 5/8 दक्षिणद्वारहितं वर्धमानं धनप्रदम् ।
119. चन्द्रशाला जलाशय में निर्मित लघुप्रासाद है । - द्र० वृहद्वृत्ति, प्रपत्र 3121
120. उत्तराध्ययन, 9 /281
121. वही, 9/301
122. वही, 9/321
123. वही, 9 / 341
124. भारत के प्राचीन अभिलेख, पृ० 102।
125. उत्तराध्ययन, 9/401
126. वही, 18/42 यहां एकच्छत्र से अभिप्राय पुनः चक्रवर्ती साम्राज्यवादी राजा से है।
127. पांचाल देश का राजा ब्रह्मदत्त मुनि चित्त के वचनों का पालन नहीं कर सका। अत: अनुत्तर भोग भोग कर सप्तम नर्क में गया । - उत्तराध्ययन, 13/341
128. वही, 14/301
129. कल्पसूत्र एस० बी०ई०, पृ० 242601
130. सूत्रकृतांग एस०बी०ई०, 2/1/13 |
131. उल्लेखनीय है कि उपरोक्त वृत्तान्त महावीर के जन्म के समय का है। जिनका जन्म ज्ञातृक
क्षत्रिय कुल में हुआ था । अतएव यह परम्परा ब्राह्मण धर्म सम्मत क्षत्रिय परम्परा है। स्वयं जैन धर्म में क्या ऐसी परम्परा थी प्रमाणित करना कठिन है। - कल्पसूत्र एस०बी०ई०, लाइफ आफ महावीर 103, पृ० 254।
132. कल्पसूत्र एस० बी०ई०, पृ० 2541
133. अभयदेव, व्याख्याप्रज्ञप्ति टीका, 5/7, पृ० 228 बेचरदास दोषी का अनुवाद |
134. द्र० आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० 51।
135. उत्तराध्ययन, 19/4: 21/3 : उत्तराध्ययन टीका में सप्तभूमिक प्रासाद का है। जातकों में