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130 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
गवेषण या उत्पादन दोष
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भोजन सम्बन्धी सोलह उत्पादन225 दोष ऐसे हैं जिन्हें माध्यम बना कर श्रमण गृहस्थ से भिक्षा पा लेते हैं। यह हैं
(1) घातृकर्म - यदि श्रमण गृहस्थ के बच्चों को खिलाये। (2) दूतकर्म - यदि वह गृहस्थ को अन्य व्यक्तियों के समाचार दे। (3) निमित्त - यदि वह दानवृत्ति की प्रशंसा करके भिक्षा पाये। (4) आजीविक - यदि वह अपने जन्म और परिवार के विषय में जानकारी
दे।226 (5) वपनीक - यदि दुखों का विस्तार से वर्णन करके भिक्षा पायी हो। (6) चिकित्सा - यदि रोगी की चिकित्सा करके पाया हो। (7) क्रोधपिण्ड - क्रोध प्रदर्शित करके या धमकी देकर पाया हो। (8) मानपिण्ड - यदि वह दाता से यह कह कर भिक्षा पाये कि वह अन्य
भिक्षुओं को भोजन लाने का वचन दे चुका है। (9) मायापिण्ड - यदि तमाशे दिखाकर ठिठोली से अथवा विदूषक बन कर
पायी हो। (10) लोभपिण्ड – यदि वह अच्छी शिक्षा पाने के लालच से गया हो। (11) समस्त पिण्ड - दाता की चाटुकारिता करे। (12) विद्यापिण्ड - यदि अपना ज्ञान बधारे या देवता को आव्हान करे। (13) मन्त्रदोष - मन्त्र द्वारा किसी गृहस्थ का उपकार करके पायी हो। (14) कूर्णयोग - यदि अदृश्य होकर भोजन ले भागे। (15) योगपिण्ड - यदि लोगों को जादू या करिश्मा दिखाकर पाये। (16) मूलकर्म - सम्मोहन या जादू से भूत-प्रेत भगाकर पायी हो।
ग्रहणैषणा
ग्रहणैषणा के दस दोष हैं227
(1) संकित ___ - यदि भयभीत गृहस्थ से भिक्षा स्वीकार कर ले। (2) प्रक्षित - यदि भोजन सचित्त या अचित्त द्रव्य से बना हो। (3) निक्षिप्त - यदि भोजन गृहस्थ द्वारा संचित द्रव्य पर रखकर दिया
जाये जैसे पत्ते पर अण्डे, जीव या घुन हों। (4) पिहित – यदि संचित भोजन अचित्त द्रव्य से ढका हो या अचित