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जैन नीतिशास्त्र का स्वरूप • 181
इसी को नामान्तर से स्थानांगसूत्र तथा समवायांग सूत्र में नौ गुप्तियों के रूप में वर्णित किया गया है। इस प्रकार है
(1) निर्ग्रन्थ, स्त्री, पशु और नपुंसक से आकीर्ण शयन और आसन का प्रयोग न
करे। (2) केवल स्त्रियों के विषय में कथा न करे अर्थात् स्त्री कथा न करे। (3) स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे।'5 (4) स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इन्द्रियों को दृष्टि गड़ा कर न देखे और न.
अवधानपूर्वक उनका चिन्तन करे। (5) स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, विलाप आदि शब्द न सुने। (6) प्रणीत रसभोजी न हो। (7) पूर्व, क्रीड़ाओं का अनुसरण न करें। (8) मात्रा से अधिक न खाये न पीए। (9) प्रणीत आहार न करे। (10) शब्द, रूप, रस, स्पर्श, गन्ध तथा लोक कीर्ति में आसक्त न हो। (11) विभूषा न करे। (12) सुख में प्रतिबद्ध न हो।
ब्रह्मचर्य की विराधना के दस कारण बताये गये हैं
(1) स्त्री संसर्ग-स्त्रियों के साथ संसर्ग करना। (2) प्रणीत रस भोजन-अत्यन्त गृद्धि से पांचों इन्द्रियों के विकारों को बढ़ाने
वाला आहार करना। (3) गन्धमाल्य संस्पर्श-सुगन्धित द्रव्यों तथा पुष्पों के द्वारा शरीर का संस्कार
करना। (4) शयनासन-शयन और आसन में गृद्धि रखना। (5) भूषण-शरीर का मण्डन करना। (6) गीत-वाद्य-नाट्य, गीत आदि की अभिलाषा करना। (7) अर्थसम्प्रयोजन-स्वर्ण आदि का व्यवहरण। (8) कुशील संसर्ग-कुशील व्यक्तियों का संसर्ग। (७) राज सेवा–विषयों की पूर्ति के लिए राजा का गुण कीर्तन करना। (10) रात्रि संचरण-बिना प्रयोजन रात्रि में इधर उधर जाना।
दिगम्बर विद्वान आशाधरजी ने ब्रह्मचर्य के दस नियमों को निम्न रूप में