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राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 271
राजा के कर्तव्य
जैन सूत्रों से राजा के कर्तव्यों पर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है। राजा से अपेक्षा की ती थी कि वह चांदी, सोना, मणि, मोती, कांसे के पात्र, वस्त्र, वाहन, कोष और भण्डार की अभिवृद्धि करें। 12 यही नहीं वह भूमि का विस्तार करे, पशु और धान्य की भी वृद्धि करे | | 13 राजा को पुर, जनपद, राजधानी, सेना और अन्त: पुर का स्वामी तथा रक्षक होना चाहिए। 14 कलिंगराज खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से प्रकट होता है कि जैन धर्म के पालक इस कलिंगाधिपति ने चौबीसवें वर्ष की समाप्ति पर महाराजाभिषेक प्राप्त किया। अभिषेक के प्रथमवर्ष में तूफान से नष्ट हुए कलिंग नगर के प्रमुख द्वार प्राचीर और गृहों का जीर्णोद्धार किया। टूटे हुए शीतल जलाशयों का पुनर्निर्माण किया और उनके सोपान बनवाये तथा पैंतीस लाख मुद्रा व्यय करके प्रजा को प्रसन्न किया । इतिहासकार इस विषय में आश्चर्य प्रकट करते हैं कि जैन धर्म के अनुयायी, अभिलेख के आरम्भ में अर्हतों और सिद्धों को आव्हान करने वाले महाराज खारवेल हिंसाजन्य रक्तपात में संलग्न रहे।'' राजा को अर्गला, बुर्ज, खाई, 116 नगर का परकोटा, गोपुर नगर का द्वार, अट्टालिकाएं, दुर्ग, दुर्ग की खाई तथा शतघ्नी एक बार में सैकड़ों को मारने वाला दुर्ग विशेष बनाना चाहिए। 17 इस प्रसंग में कलिंगराज खारवेल की स्तुति हाथीगुम्फा अभिलेख में की गयी है। वह नन्दराजा के द्वारा तीन सौ वर्ष पूर्व उद्घाटित तनसुलि नहर को नगर तक ले आया था। इस प्रकार उसने प्रजाहित कार्य किया। राजा को अपने रहने के लिए प्रासाद, वर्धमानग्रह | 18 तथा चन्द्रशालाएं'” बनाना चाहिए। राजा बटमारों, प्राणघातक डाकुओं, गांठ काटने वालों और चोरों से नगर की रक्षा करे। 120 उसे दण्ड का उचित प्रयोग करना चाहिए ताकि निर्दोष की रक्षा हो और अपराधी को दण्ड मिले। 21 जो राजा उसके समक्ष न झुकते हों, उसका शासन न मानते हों उन्हें अपने अधीन करे। 122 वह अपनी सेना का इतना बल बढ़ाये कि दस लाख योद्धाओं को जीत सके। 123 सम्भवतः यह आशाएं और अपेक्षाएं साम्राज्यवाद की आकांक्षा रखने वाले चक्रवर्ती सम्राट से की गयी प्रतीत होती हैं।
भावी सम्राट को विधिवत शिक्षा दी जाती थी । यद्यपि आगमों में ऐसी स्पष्ट चर्चा नहीं है तथापि अभिलेखिक साक्ष्य इस विषय पर स्पष्ट कथन करते हैं। हाथीगुम्फा अभिलेख 124 से प्रकट होता है कि जैन शासक कलिंगराज खारवेल पन्द्रह वर्ष की आयु तक शोभायुक्त शरीर द्वारा कुमारोचित क्रीड़ा करते रहे। तदुपरान्त लेख, रूप, गणना, व्यवहार में विशारद और सब कलाओं में निपूर्ण नौ वर्ष तक युवराज रहे।
राजा से यह भी अपेक्षा की गयी है कि वह विपुल दानी हो तथा दस लाख