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राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 273
राहे, तिराहे और चौराहे दिखाई देते थे । 1 36 पांचाल नरेश ब्रह्मदत्त के पास उच्चोदय, मधु, कर्क, मध्य और ब्रह्मा नामक राजप्रासाद थे। 1 37 यह राजप्रासाद विशिष्ट पदार्थों से युक्त विविध और प्रचुर धन से परिपूर्ण थे। यहां स्त्रियों से परिवृत्त राजा नाट्य, गीत और वाद्यों से मनोरंजन करता था। 138 राजा के यह प्रासाद नन्दन प्रासाद कहे जाते थे। इनमें ऐश्वर्य के सभी साधन विद्यमान होते थे। राजप्रासाद में राजा के लिए व्यायामशाला होती थी जहां व्यायाम के पश्चात् सहस्र प्रकार के सुगन्धित तेल राजा की मालिश के लिए होते थे । 1 39 इस व्यायामशाला में राजा प्रतिदिन व्यायाम करता था। ऊंची कूद, कुश्ती, छलांग और मुक्केबाजी का अभ्यास तथा सन्तुलित व्यायाम राजा शारीरिक सौष्ठव हेतु करता था । चतुर व्यक्ति अपनी हथेलियों से उसके अंगों की मालिश करते थे । 140
राजप्रासाद में स्नानगृह भी अति रमणीय बनाये जाते थे। जिनमें अनेक मुक्ताओं से अलंकृत गवाक्ष होते थे। इनका कुट्टिमतल बहुमूल्य पत्थरों से निर्मित होता था। स्नान का पटा रत्नजड़ित होता था । स्नान का जल सुगन्धित होता था । अंगप्रोक्षण कोमल और आकर्षक होते थे। शरीराच्छादन के पश्चात राजा चन्दन और गोशीर्ष का आलेपन कराता । पश्चात् बहुमूल्य वस्त्र धारण कर, आभरणों से अलंकृत होता था। 141
राजप्रासाद में सभा के लिए विशाल प्रांगण तथा सभाकक्ष होते थे जहां राजा पूर्वाभिमुख होकर सिंहासन पर प्रजा की बात सुनते थे। 142 राजा के समीप ही पार्श्व में बहुमूल्य, पारदर्शक, स्वर्ण खचित, कोमल और कलात्मक आकृतियों से बुना हुआ आवरण लटकता था जहां राजमहिषी रत्नजटित सिंहासन पर, गावतकिए लगा कर पारिवारिक भृत्य और परिचारिकाओं के बीच बैठती थी । 143 प्रासाद का मुख्य द्वार सिंहद्वार कहलाता था, जहां से नगर के गणमान्य व्यक्ति एवं प्रशासनिक पदाधिकारी प्रवेश करते थे । 144
राजा की परिषद
राजा को प्रतिदिन राजपरिषद के साथ प्रजा के सम्मुख आना होता था । 145 वह कोरिंथ पुष्पों की माला पहन कर जय जयकार की ध्वनि के बीच चलता था, जहां उस पर निरन्तर चंवर ढुलाया जाता था । अनेक शासन प्रमुखों, सामन्त राजाओं, युवराजों, जनप्रमुखों, कुटुम्बीजनों, मन्त्रियों, नागरिकों, व्यापारियों, श्रेणिकों, सेनापतियों, दूतों और अंगरक्षकों के साथ राजा आकर सिंहासनासीन होता था । 1 46 राजा की परिषद में क्षत्रिय, गण, उग्र, राजपुत्र, ब्राह्मण और भोगिक होते थे। 147
राजपरिषद के सदस्यों को राज्य कहकर पुकारा जाता था। 48 गणसभा और संघसभा दोनों में यही विशेषण सदस्यों के लिए प्रयुक्त होता था | 149 बौद्धग्रन्थ इस