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220 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
नाम यह हैं
(1) दर्शन, (2) व्रत, (3) सामायिक, (4) पौषघ, (5) नियम, (6) ब्रह्मचर्य, (7) सचित्त त्याग, (8) प्रारम्भ त्याग, (9) प्रेष्य परित्याग अथवा परिग्रह त्याग, (10) उद्दिष्ट भक्त त्याग तथा (11) श्रमण भूत।
दर्शन प्रतिमा इसमें सम्यग्दृष्टि प्राप्त होती है। क्योंकि यह साधना की प्रथमावस्था है अत: साधक से मांस, मदिरा आदि के त्याग की अपेक्षा की जाती है। इस आरम्भिक अवस्था में ही श्रावक से रात्रि भोजन त्याग की आशा की जाती है। इस अवस्था में श्रावक को पांच उदुम्बर फलों, छूत, मृगया, मांस, मदिरा, मधु, वेश्यागमन, व्यभिचार तथा चोरी त्यागने की अपेक्षा की जाती है।254 पांचों अणुव्रत तथा मूल गुण प्रतिमा से संयुक्त हैं।
व्रत प्रतिमा इसमें शीलवत, गुणव्रत, विरमणव्रत, पौषधोपवास आदि धारण किये जाते हैं।
सामायिक प्रतिमा इसके अन्तर्गत सामायिक एवं देशावकाशिक व्रतों की सम्यक् आराधना की जाती है। चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या एवं पूर्णिमा के दिन पौषधोपवास व्रत का पालन नहीं होता।255
पौषध प्रतिमा इसमें चतुर्दशी आदि के दिनों में परिपूर्ण पौषधव्रत का सम्यक् पालन किया जाता