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जैन नीतिशास्त्र का स्वरूप • 221
नियम प्रतिमा इसमें स्थित श्रावक निम्नोक्त पांच नियमों का पालन विशेष रूप से करता है256
(1) स्नान नहीं करना, (2) रात्रि भोजन नहीं करना, (3) धोती की लांघ नहीं लगाना, (4) दिन में ब्रह्मचारी रहना एवं रात्रि में मैथुन की मर्यादा करना। (5) एक रात्रि की प्रतिमा पालन करना अर्थात् महीने में कम-से-कम एक रात
कामोत्सर्ग अवस्था में ध्यानपूर्वक व्यतीत करना।
ब्रह्मचर्य प्रतिमा दिन की भांति रात्रि में भी ब्रह्मचर्य का पालन करना। इसमें केवल सम्भोग का ही त्याग नहीं है अपितु किसी भी प्रकार का स्त्री साहचर्य निषिद्ध है। विभूषा वर्जित है।257
सचित्त त्याग प्रतिमा सब प्रकार से सचित्त आहार का परित्याग तथा दूसरों को भी ऐसे आहार देने का परित्याग।258
आरम्भत्याग प्रतिमा सभी सांसारिक व्यवसायों जैसे सेवा, कृषि तथा वाणिज्य व्यापार का त्याग। साधक को इस प्रतिमा के अन्तर्गत न तो किसी अन्य को इन व्यवसायों को करने के लिए कहना चाहिए न ही अपनी सम्मति देनी चाहिए।259
परिग्रह त्याग प्रतिमा आरम्भ के निमित्त किसी को भी भेजने-भिजवाने का त्याग। मात्र कुछ वस्तुओं के अतिरिक्त सभी वस्तुओं का परिग्रह। यहां परिग्रह के अन्तर्गत केवल बाह्य सम्पत्ति ही नहीं आती अपितु आन्तरिक दोष, यौन अभिलाषा, पर में ममत्व, हास्य, कामवासना, राग तथा विराग भी आते हैं।260 श्वेताम्बर इसे प्रेष्यत्याग प्रतिमा भी कहते हैं।261 अनुमतित्याग प्रतिमा भी यही है। इसका अर्थ है सभी विषयों से इन्द्रियों को हटा कर भाग्य के अधीन कर देना।262
उदिष्ट भक्त त्याग प्रतिमा . इस प्रतिमा में स्थित श्रावक उस्तरे से मुण्डित होता हुआ शिखा धारण करता है