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240 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति से अपने आपको सर्वथा मुक्त नहीं कर पाये थे।। उन्होंने जाति आर्य और जाति जुंगित अर्थात् जुगुप्सित, कर्म आर्य और कर्म जुंगित तथा शिल्प आर्य और शिल्प जंगित में भेद बताकर ऊंच नीच का संस्तरण किया है। 2
फिक की तो यह मान्यता है कि बुद्ध सुधारवादी नहीं थे। उन्होंने जाति उन्मूलन के लिए वचन या कर्म किसी से भी प्रयास नहीं किया। वह तो केवल उदारवादी कहे जा सकते हैं। चार्ल्स इलियट के अनुसार बुद्ध ने यद्यपि अन्य जातियों की अपेक्षा ब्राह्मण जन्म से ऊंचे हैं इस बात से इन्कार किया था किन्तु जाति के विरुद्ध कुछ नहीं कहा था। ___ यद्यपि जैन साहित्य में क्षत्रियों की अपेक्षा ब्राह्मणों को निम्न ठहराया गया है फिर भी समाज में ब्राह्मणों का स्थान ऊंचा था। इसी कारण जैन सूत्रों में ब्राह्मणों सम्बन्धी अवधारणाओं में विरोधाभास पाया जाता है। जैन सूत्रों में समण (श्रमण) तथा माहण (ब्राह्मण) शब्द का कई स्थलों पर साथ साथ उल्लेख यह दर्शाता है कि दोनों का ही समाज में समान रूप से आदर था। यह भी विचारणीय है कि महावीर को जैनसूत्रों में महागोप, महासार्थ माहषेण मइमया : मतिमान माहण, माहण और महामाण' कह कर सम्बोधित किया गया है। निशीथ चूर्णि में कथन है कि ब्राह्मण स्वर्ग में देवता के रूप में निवास करते थे। प्रजापति ने इस पृथ्वी पर उन्हें देवता के रूप में ही उत्पन्न किया। अतएव जाति मात्र से सम्पन्न इन ब्रह्म बन्धुओं को दान देने से महान फल की प्राप्ति होती है। जैन आचार्यों ने जन्म की अपेक्षा कर्म पर अधिक बल दिया है। जैन सूत्रों में कर्मनिष्ठ ब्राह्मण का आकलन किया गया है जो चरित्र के सभी उत्कृष्ट गुणों से सम्पन्न हैं।०
ब्राह्मणों के विशेषाधिकार और कर्तव्य
यद्यपि सैद्धान्तिक दृष्टि से महावीर और बुद्ध ने सभी वर्गों को समान स्थान प्रदान किया किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से ब्राह्मणों को विशेषाधिकार प्राप्त था। राजा उन्हें अपने आश्रय में रखते थे और उनकी आजीविका का प्रबन्ध करते थे। चौदह विद्याओं में पारंगत काशव नामक ब्राह्मण कौशाम्बी के जितशत्रु नामक राजा की सभा में रहा करता था। उसकी मृत्यु हो जाने पर उसका स्थान दूसरे ब्राह्मण को दे दिया गया।42 __ब्राह्मणों के पारम्परिक कर्तव्यों पर कल्पसूत्र के इस दृष्टान्त से अच्छा प्रकाश पड़ता है कि जब ब्राह्मणी देवनन्दा ने निद्रा में चौदह शुभ स्वप्न देखे तब उसने पति को इनके विषय में बताया। तब ऋषभदेव ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि उनके नौ माह साढ़े सात दिन बाद सर्वांग शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र होगा जो आठ वर्ष के उपरान्त युवा होने तक चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और