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समाज दर्शन एवं समाज व्यवस्था • 251
20. राइस डेविड्स : बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 311 21. वाजसनेय संहिता, 38/19: काठक संहिता, 28/5 : में भी क्षत्रियों को, ब्राह्मणों से श्रेष्ठ
कहा गया है। वसिष्ठ (ब्राह्मण) और विश्वामित्र (क्षत्रिय) में किसकी जाति श्रेष्ठ है विचारणीय विषय बन गया था। द्र० जी०एस० घुर्ये, कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया, पृ०
63 आदि तथा रतिलाल मेहता, बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 37-38। 22. बृहदारण्यक उपनिषद्, 6/2 तथा छान्दोग्य उपनिषद्, 5/3। 23. छान्दोग्य उपनिषद, 5/11 तथा वृहदारण्यक उपनिषद्, 2/1 24. भगवद्गीता राजर्षि परम्परा की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है - श्री भगवद्गीता,
9/33: उत्तरज्झयणाणि सानुवाद, 18/50, पृ० 232। 25. बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० 20। 26. द्र० स्टडीज इन दी ओरिजिन्स आफ बुद्धिज्म, पृ० 313-14 : तथा पादटिप्पण 251 27. “एगोधिज्जाइओ पण्डितमाणी सासणं खिसति''-आवश्यक चूर्णि (जिनदासगणि) पृ०
496 तथा पं० दलसुख मालवणिया, निशीथ एक अध्ययन, पृ० 831 किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से हम इसके विपरीत ही प्रमाण पाते हैं। यदि ब्राह्मणों को यथार्थ में घृणा और शत्रुता के कारण धिक्जाति समझा जाता तो महावीर उन्हें संघ में गणधर जैसे उच्चपद पर आसीन नहीं करते जबकि उनके प्रमुख ग्यारहों गणधर ब्राह्मण कुलोत्पन्न थे। उदाहरण के लिए
नाम
जाति
गोत्र
स्थान
गौतम
ब्राह्मण "
गोबरग्राम
इन्द्रभूति अग्निभूति भाई वायुभूति क्यिता सुहम्मा मन्दिय मोरियपुत्र अकम्पिय अयलमय मज्जा प्रमाश
कोल्लकसंनिवेश वैश्यायन मोरिय संनिवेश
भारद्वाज अग्नि वसिष्ठ कासव गौतम हरआयण कोण्डिण्य
मिथिला संनिवेश कौशल संनिवेश तुंगीय संनिवेश राजगृह
जैकोबी एस०बी० ई० जि० 22, पृ० 286-87 तथा हिस्ट्री आफ जैन मोनैकिज्म, पृ०
771 28. द्र० राइसडेविड्स, बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 37-38। 29. उत्तराध्ययन, 12/29,441.
उत्तराध्ययन सूत्र के हरिकेशीय नामक इस अध्ययन में हरिकेश नामक चाण्डाल मुनि की कथा है। एक बार वह किसी ब्राह्मण के यज्ञ मण्डप में गए जहां उन्होंने वास्तविक यज्ञ के यह लक्षण बताये हैं- “वास्तविक अग्नि तप है, अग्नि स्थान जीव है, श्रुवा चम्मचनुमा लकड़ी का पात्र जिससे आहुति दी जाती है मन, वचन और काय का योग है, करीष कण्डे