Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 301
________________ राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 267 करता है। वैराज्य की यह आदर्श अवधारणा हमें महाभारत काल में भी देखने को मिलती है।2 ऐतरेय ब्राह्मण से ज्ञात होता है कि उत्तरमद्र तथा उत्तरकुरु आदि हिमालय के उत्तर के प्रदेशों में वैराज्य व्यवस्था थी तथा यह गणतन्त्र 'विराट' कहलाते थे। विराट सम्बोधन इन वैराज्यों के राजाओं का नहीं अपितु नागरिकों का है और अभिषेक राजा का नहीं जनता का होता था।64 जब संयुक्त राज्य के दोनों शासकों में मेल रहता था तब उसे द्वैराज्य (संस्कृत) या दो रज्ज (प्राकृत) कहते थे, जब उन राजाओं में झगड़ा रहता था तब उसे विरुद्धराज्य (संस्कृत) या विरुद्धरज्ज (प्राकृत) कहते थे। वैराज्य शब्द से प्रायः गणतन्त्र का निर्देश होता था। विगतो राजा यस्मात्त-राज्यं, अर्थात् जिस शासनसंस्था में राजा नहीं होता था वह वैराज्य कहा जाता था। राज्यतन्त्र या नृपतन्त्र मैगस्थनीज के विवरणानुसार चौथी शताब्दी ई०पू० में भारत में एक परम्परा प्रचलित थी। जिसके अनुसार प्रजातन्त्र का विकास राजतन्त्र के बाद माना जाता था। पुराणों में बुद्ध के पूर्व की जो राजवंशावली है उससे प्रकट होता है की छठी शताब्दी के मद्र, कुरु, पांचाल, शिवि और विदेह गणतन्त्र पहले नृपतन्त्र ही थे। यद्यपि महावीर-कालीन शासन व्यवस्था उभयतन्त्री थी जिसमें राज्यतन्त्र के साथ साथ नृपतन्त्र भी दिखाई देता है। जनसामान्य का सहज आकर्षण प्रभावी राजतन्त्र की ओर ही था। यही कारण था कि ऋग्वेद से आरम्भ हुई शासनतन्त्र की यात्रा महाजनपद से जनपद होती हुई पुन: नृपतन्त्र में विलीन हो गयी। यद्यपि जैनसूत्रों में गणतन्त्रात्मक पद्धति के प्रति दृष्टिकोण सहानुभूतिपूर्ण दिखाई देता है किन्तु यथार्थ में प्रबल आकर्षण सबल राजतन्त्र की ओर उन्मुख था। __यही कारण है कि जैन सूत्रों में राजा विषयक अवधारणा प्रशस्तिपूर्ण है। सूत्रकृतांग में राजा के विषय में लिखा है कि मनुष्यों में एक राजा है जो इतना शक्तिशाली है जैसे महान हिमवन्त, मलय, मन्दार तथा महेन्द्र पर्वत। जिसने अपने राज्य में सारे राजनीतिक तथा सैनिक विप्लव दबा दिये हैं। राजा को शक्ति का प्रतीक समझा जाता था इसलिए उसकी तुलना हथिनियों से घिरे साठ वर्ष के अपराजित बलवान हाथी”, तीक्ष्ण सींगों व वलिष्ठ कन्धों वाले वृषभ68 पशुओं में श्रेष्ठ दुष्पराजेय युवा सिंह से69. तथा अपराजित बल अस्त्रशस्त्रों से सुसज्जित वज्रपाणि पुरन्दर से की गयी है। ऐसे शक्तिमान राजा से अपेक्षित था कि वह दुष्पराक्रमी, शूर वीर योद्धा विजय वाद्यों की जयजयकार से सुशोभित हो।

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