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राजनीतिक एवं ऐतिहासिक विवरण • 265
गण या संघ राज्यों के आधार पर बनाये थे तो गण की शासन पद्धति को समझने में सहायता मिल सकती है। 48 बौद्ध संघ की गणपूर्ति कोरम के लिए बीस सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक थी। इसी प्रकार का कोई नियम गणतन्त्र की समिति में भी अवश्य रहा होगा। खास कर जब विभिन्न दलों में प्रतिद्वन्द्विता हो । पाणिनि के अनुसार जिस सभासद के आने से गणपूर्ति होती थी उसको 'गणतिथ या संघतिथ' कहते थे।” गणपूर्ति जो आवश्यक कार्यवाही करता था, उसे गणपूरक कहते थे 50 सदस्यों के बैठने का स्थान निर्धारण करने के लिए भी एक कर्मचारी नियुक्त था। सम्भवत: गण-प्रमुख मंच पर बैठते थे और शेष सदस्य दलों के अनुसार उनके सामने रहते थे। गणमुख्य अधिवेशन का अध्यक्ष होता था और मन्त्रणा का नियन्त्रण करता था। किंचित पक्षपात हो जाने पर वह आलोचना का पात्र होता था। पहले प्रस्तावक औपचारिक रूप से प्रस्ताव उपस्थित करता था, तत्पश्चात् उस पर वादविवाद होता था। बौद्ध संघ में यह प्रथा थी कि प्रस्ताव के समर्थक मौन रहते थे केवल विरोधी ही असहमति प्रकट करते थे। समितियों में प्रस्ताव पर अवश्य ही वाद-विवाद होता होगा।
बौद्ध संघ में प्रस्ताव तीन बार उपस्थित और स्वीकृत किया जाता था । मतभेद होने पर मतदान की व्यवस्था थी और बहुमत का निर्णय मान्य होता था। यही कारण है कि गणव्यवस्था का आधार प्रजातान्त्रिक माना जाता था।" जब शाक्यों को कोसल की सेना द्वारा राजधानी घिर जाने पर कोसल की आखिरी चेतावनी मिली तब उनकी समिति यह निश्चय करने के लिए बुलाई गई कि दुर्ग के फाटक खोले जाएं या नहीं। कुछ सदस्य पक्ष में थे कुछ नहीं थे। अतः मत संग्रह हुआ जिसमें बहुमत आत्मसमर्पण की ओर था। अतः वही किया गया। 2 मतदान कभीकभी अप्रकट रूप से किया जाता था तब उसे ग्रहयक मतदान कहते थे। कभी-कभी सदस्य मतसंग्रह करने वाले के कान में अपना मत रखते थे, तब उसे सकर्णजपक मतदान कहते थे। कभी कभी प्रकट रूप से मतदान होता था तब उसे विवतक मतदान कहते थे।” प्रत्येक सदस्य को अनेक रंग की शलाकाएं दी जाती थीं व पूर्वसंकेत के अनुसार विशिष्ट रंग की शलाका विशिष्ट प्रकार के मत के लिए 'शलाकागाहपक' के पास दी जाती थी । मत के लिए छंद शब्द का प्रयोग किया जाता था। जिसका तात्पर्य व्यक्ति के निजी अभिप्राय से था। जैसी मतदान पद्धति बौद्ध संघ में थी निश्चय ही वैसी गणतन्त्रों में भी होगी | 24
निर्विवाद है कि बुद्ध के जीवनकाल में मल्ल, लिच्छवि और विदेह राज्य गणतन्त्र थे। उनके पड़ोसी मगध और कोसल के राजा उन्हें जीतने का बारम्बार प्रयास करते थे इसलिए अपनी रक्षा के लिए यह गणतन्त्र अपना एक संयुक्त राज्यसंघ बीच-बीच में बनाते रहते थे। कभी लिच्छवी मल्लों से मिल जाते थे तो कभी विदेशों से, पर 500 ई० पू० में मगध ने मल्ल और विदेह राज्यों को जीत