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264 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
या परिषद के हाथ में हो जिसके सदस्यों की संख्या चाहे कम हो या अधिक। इसी प्रकार प्रचीन रोम, एथेंस, स्पार्टा, कार्थेज आदि प्रजातन्त्र माने गये यद्यपि इनमें प्रजातन्त्र के सब लक्षण विद्यमान नहीं थे।
इस प्रकार शास्त्रीय और ऐतिहासिक दोनों आधारों से प्राचीन भारतीय गणराज्य प्रजातन्त्र कहे जाएंगे। इन राज्यों में शासनाधिकार एक व्यक्ति नहीं अपितु एक वर्ग के हाथ में था । लिच्छवि का गणराज्य अधिक विस्तृत न होने पर भी उसमें 7707 राज्य संस्थापक के वंशजों राजा की पदवी का अधिकार था । 40 धीरे-धीरे राज्य संचालन पर क्षत्रियों एकाधिकार हो गया तब दो प्रकार के गणतन्त्र सामने आये। जहां केवल राज्य संस्थापक क्षत्रिय वंशजों के हाथ में सत्ता थी उस गणतन्त्र को राजक गणतन्त्र कहने लगे। जहां सर्वक्षत्रिय वर्ग के हाथों में सत्ता थी उस गणतन्त्र को राजन्यक गणतन्त्र कहा जाने लगा। यही कारण है कि शान्तिपर्व में एक जगह गणतन्त्रों में सब अधिकारी एक जाति के व एक वंश के रहते हैं ऐसा विधान किया गया है । 1
गणराज्य अपनी समरशूरता के लिए प्रख्यात थे। उनके मन्त्रिमण्डल के सभासद अवश्य ही संकट से अपने गण के उद्धार की शक्ति रखने वाले धीर वीर सेनानी रहे होंगे। गणनेता के लिए प्रज्ञा, पौरुष, उत्साह, अनुभव, शास्त्र और गणपरम्परा का ज्ञान आदि गुणों की अत्यन्त आवश्यकता थी । 12 गणाध्यक्ष ही मन्त्रिमण्डल का प्रधान और समिति का अध्यक्ष हुआ करता था। शासन कार्य की देखरेख के साथ ही उसका मुख्य कार्य गण की एकता बनाये रखना और झगड़े तथ फूट का निवारण करना था। जो बहुधा गणराज्यों के नाश के कारण होते थे। गणाध्यक्ष के उत्तरदायी पद के कारण ही सम्भवत: जैन संघ ने अपने संघीय प्रशासनिक अधिकारियों में 'गणि' पद सृजित किया जो संघ में एकता बनाये रखने का प्रयास करता था। गणि, गणधर, गणवच्छेदक गणव्यवस्था को आदर्श मानकर सृजित किये गये पद प्रतीत होते हैं। जैन सूत्रों में गणि का सामान्य अर्थ गण के अधिपति के अर्थ में ही हुआ है। जिसका गण हो वही गणि है गणोयस्य अस्तिति।43 मुनि श्री नथमल के अनुसार छोटे-छोटे गणों का नेतृत्व गणि का कार्य था। 14 गण संघ की सबसे बड़ी इकाई था। इसकी व्याख्या कुलसमुदय: के रूप में की गयी है।'' भगवती सूत्र के अनुसार गण की रचना तीन कुलों की से की जाती थी। 46
उल्लेखनीय है कि गणतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था महावीर के काल में विद्यमान थी और उसी के अनुकरण पर महावीर ने अपने संघ के 11 गणों में गणधर पद पर नियुक्ति की । इस प्रकार जैन धर्मसंघ राजनीतिक गण संघ का अनुकरण भर था। इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि बौद्ध संघ के विषय में यही धारणा पाई जाती है। 7 यदि हम यह माल लें कि बौद्ध संघ ने नियम तत्कालीन