Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 284
________________ 250 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति 3. -कल्पलता समयसुन्दरगणि, पृ० 1991 उत्तराध्ययन, 25/31 (दशवैकालिकः उत्तराध्ययन, लाडनूं), पृ० 177 : तुलनीय - भगवद्गीता जहां गुण और कर्म के आधार पर ही चातुर्वर्णों की उत्पत्ति मानी गई है - चातर्वर्ण्यमया सष्टं गुणकर्मविभागशः - भगवदगीता. 4/131 4. उत्तराध्ययन, 25/31: विपाकसूत्र 5, पृ० 33: आचारांग नियुक्ति 19/27: बौद्ध ग्रन्थों में भी चारों वर्ण उल्लिखित हैं। महापुराण, 243/16/368—इस प्रसंग में उल्लेखनीय है कि वर्गों की यह उत्पत्ति आदिपुरुष के अंगों से मानकर जैवीय तथा दैवीय उत्पत्ति के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है। यही सिद्धान्त ऋग्वेद के पुरुषसूक्त, महाभारत तथा अन्य परवर्ती वैदिक साहित्य से प्राप्त होता है। तुल० - ब्राह्मणों अस्यमुखमासीद् । बाहु राजन्यः कृतः। उरु तदस्ययद् वैश्यः शूद्रा: पदम्यां अजायत्।। ऋग्वेद, 10/90/121 6. महापुराण, 244/16/368 : द्र० ऋषभदेव एक परिशीलन, पृ० 861 7. वैश्याश्च कृषि वाणिज्य पाशुपाल्योपजीविता: - महापुराण, 184/16/362। 8. वही, 245/16/3681 जैन साहित्य में भारतीय समाज, पृ० 2231 10. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, 1/6/241। 11. ब्राह्मण परम्परा में यज्ञोपवीत उपनयन का प्रतीक था और देव, पितृ और ऋषि की स्मृति दिलाता था। 12. भगवतीसूत्र, 15/1/557 : उत्तराध्ययन सूत्र, 25/31 : विवागसूत्र 5: आचारांग नियुक्ति 19-27 : ऋग्वेद, पुरुष सूक्त 90 : मनु 1/31 : भगवद्गीता 4/13 : महाभारत शान्तिपर्व, 12/60/2 : द्र० बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 233 : डायलाग्स ऑफ बुद्ध, 1/ 148: विनयपिटक 11/4/1601 13. स्टडीज इन दी भगवती सूत्र, पृ० 1461 14. बौद्ध संस्कृति का इतिहास, पृ० 398 तुलनीय - चातुर्वर्ण्य मयासृष्टं गुणकर्मविभागशः। - भगवद्गीता, 4/13। ऐसे अनेक बौद्ध एवं जैन साक्ष्य हैं जिनसे ज्ञात होता है कि बौद्ध एवं जैन संघ में प्रवेश करते समय व्यवहार में उच्च जाति को प्राथमिकता दी जाती थी। द्र० फिक रिचार्ड, सोशल लाइफ आर्गेनाइजेशन इन नार्थ ईस्ट इण्डिया इन बुद्धाज टाइम, पृ० 31-321 16. निशीथ चूर्णि पीठिका 487 की चूर्णि (जिनदासगणि महतर) उपाध्यारा कवि अमर मुनि तथा मुनि कन्हैयालाल, आगरा। 17. ब्राह्मणों अस्यमुखमासीद् – ऋग्वेद 10/90/121 18. ब्राह्मण को साक्षी मानकर अग्नि को, गंगाजल को अथवा गाय के गोबर को हाथ में लेकर साक्षी भी दी जा सकती थी और शपथ या प्रण भी किया जा सकता था। - शामशास्त्री, अर्थशास्त्र-61 19. आचारांग (एस० बी०ई० जि० 22), 2/17-18 पृ० 189 तथा कल्पसूत्र (एस०बी०ई० जि० 22), 2/17-18 पृ० 2251 तुलनीय बौद्धग्रन्थ, निदानकथा - जहां पर ऐसा ही उल्लेख है कि बुद्ध खत्तिय और माहण नाम की ऊंची जातियों में ही पैदा होते हैं, नीची जातियों में नहीं। यहां भी चार वर्णों में क्षत्रियों का नाम पहले लिया गया है। द्र० ललित विस्तार, पृ० 31।

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