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248 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
वाद-विवाद व क्लेश भी हो सकता है । 1 32
अपने भोजन को अन्य पन्थ के साथ बैठकर खाने पर गृहस्थों का जैन मुनियों से विश्वास हट सकता है। उल्लेखनीय है कि जैन आचारशास्त्र में इस बात की अत्यन्त सतर्कता रखी गयी है कि मुनि का आचार समाज की तथा गृहस्थ श्रावकों की दृष्टि में असन्दिग्ध रहे तथा उनकी छवि उज्ज्वल बनी रहे।
इसी प्रकार मुनि को आदेश है कि जहां गाय का दोहन हो रहा हो या आहार पक रहा हो तब साधु उस समय भिक्षा के लिए वहां न जाये। 33 क्योंकि यदि गाय दुहने के समय मुनि वहां पहुंचे और गाय साधु के वेश से डर जाये तो दुहने वाले गृहस्थ के चोट लग सकती है और यह सोचकर अब इस मुनि को भी दूध देना पड़ेगा वह झल्ला कर बछड़े के हिस्से का भी दूध निकाल लेगा। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप में साधु की उपस्थिति गृहस्थ को हिंसा के लिए उकसायेगी। इसी प्रकार यदि वह आहार पकने के समय पहुंच गया तो गृहस्थ को भोजन पका लेने की आतुरता होगी तथा इससे अग्निकायिक जीवों की विराधना होगी। जैसे भ्रमर एक ही फल से रस न लेकर अनेक पुष्पों से थोड़ा-थोड़ा लेता है और फूल का सौन्दर्य नहीं बिगाड़ता वैसी ही तृप्ति मुनि को गृहस्थ द्वारा भिक्षा लेकर करनी चाहिए। न तो वह इतना ग्रहण करे कि गृहस्थ का परिवार भूखा रह जाये और न ही इतना कि मुनि के लिए पुन: पकाये।
यदि भिक्षार्थ गया मुनि गृहस्थ का घर कण्टकशाखा से बन्द देखे तो बिना पूर्वानुमति उसमें प्रवेश न करे । 134 क्योंकि - ( 1 ) यदि कोई स्त्री अन्दर स्नान कर रही हो तो साधु को देख क्रुद्ध हो सकती है, (2) गृहस्वामी आवेश में मुनि को अपशब्द कह सकता है, (3) किसी वस्तु के खाने का दोषारोपण मुनि पर हो सकता है, एवं (4) पशु आदि अन्दर आकर गृहस्थ की हानि कर सकते हैं।
यदि किसी श्रावक के द्वार पर पहले से ही शाक्यादि भिक्षु अथवा श्रमण खड़े हों तो जैन मुनि उनका उल्लंघन करके आगे न जाये क्योंकि उल्लंघन करके आगे जाने से श्रावक के मन में यह विपरीत भावना आ सकती है कि यह कैसा मुनि है, इसमें इतना भी विवेक नहीं कि पहले खड़े व्यक्ति को लांघ कर खाता है। उसके मन में यह भी आ सकता है कि सबको आने के लिए मेरा घर फालतू लगता है। यदि गृहस्थ भक्तिवश पहले जैन मुनि को देगा तो अन्यधर्मी गृहस्थ को पक्षपाती कहेंगे और गृहस्थ का मन खिन्न हो जायेगा । 35
इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि उस युग में सभी घरों में सब तरह के भिक्षुओं को दान देने की परम्परा नहीं थी । बहुत से व्यक्ति बहुत से भिक्षुओं को बिना कुछ दिये खाली हाथ भी लौटा देते थे।
भिक्षा के लिए जाने वाला साधु यह ध्यान रखे कि वह घर के द्वार अथवा नवनिर्मित दीवार को न पकड़े। स्नान घर के सम्मुख खड़ा न हो तथा दीवार की