Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 287
________________ समाज दर्शन एवं समाज व्यवस्था • 253 लक्षणों का निरूपण है। अट्ठाइस से इक्कीस के अतिरिक्त प्रत्येक श्लोक के अन्त मेंतं वयं बूम माहणं, ऐसा पद है। इसकी तुलना धम्मपद के ब्राह्मण वर्ग 36 वें, सुत्तनिपात के वासेत 35 के 245वें अध्याय से की जा सकती है। धम्मपद के ब्राह्मणवर्ग में नौ श्लोकों के अतिरिक्त सभी श्लोकों का अन्तिम पद तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं, है । इनमें कौन ब्राह्मण होता है और कौन नहीं इसका सुन्दर विवेचन किया गया है । अन्तिम निष्कर्ष यही है कि ब्राह्मण जन्मना नहीं होता कर्मणा होता है। इसी प्रसंग में तुलनीय, महाभारत, शान्तिपर्व, अ० 245 | इसमें छत्तीस श्लोक हैं। इसमें सात श्लोकों के अन्तिम चरण में तं देवा ब्राह्मणं विदः ऐसा पद है। इस प्रकार जैन, बौद्ध और ब्राह्मण तीनों साक्ष्यों में ब्राह्मण विषयक अवधारणा में आश्चर्यजनक समानता दृष्टिगोचर होती है। 46. आवश्यक चूर्णि, पृ० 213 आदि। 47. उत्तराध्ययन टीका, 3, पृ० 571 48. दी एज आफ विनय, पृ० 163। 49. उत्तराध्ययन टीका- 131 50. रतिलाल एन० मेहता, प्री बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० 249 । 51. उत्तराध्ययन, अध्याय 25 | 52. कल्पसूत्र एस० बी०ई०, जि० 45, पृ० 220-211 53. वही, जि० 22, पृ० 2251 54. इसी विषय में एक दूसरी परम्परा भी है जिसके अनुसार महावीर त्रिशला ही के गर्भ में आये और उन्हीं से जन्म ग्रहण किया। इसकी व्याख्या तीन प्रकार से की जा सकती है- (1) यह घटना ब्राह्मणों को नीचा दिखाने के लिए बाद में जोड़ी गई हो, (2) कृष्ण की तरह महावीर के जीवन को चमत्कारमय बनाने के उद्देश्य से गढ़ी गई हो एवं (3) गर्भापहरण की घटना वास्तविक है। गर्भ की जैविक प्रक्रिया के स्थूल सिद्धान्त से यह स्पष्ट है कि पुरुष के वीर्य से ही स्त्री में मानव निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ होती है। यदि हम यह स्वीकार कर लें कि महावीर ऋषभदत्त द्वारा देवनन्दा के गर्भ में आये तो सिद्धार्थ और त्रिशला का महावीर के विषय में मात्र यह दाय रह जाता है कि त्रिशला ने उनका पोषण किया चाहे गर्भ के रूप में या नवजात शिशु के रूप में । सिद्धार्थ का कोई भी दाय इस दृष्टि से महावीर के जन्म देने में नहीं हरता। दूसरा प्रश्न यह उठता है कि त्रिशला ने देवनन्दा के गर्भ का पोषण क्यों स्वीकार किया। कोई स्त्री यह दायित्व तभी स्वीकार कर सकती है जब वह स्वयं शिशु को जन्म देने में असमर्थ हो । यदि यह माना जाये कि त्रिशला के सन्तान नहीं होती थी। इसलिए उसने सम्पोषण का दायित्व स्वीकार किया। तब अनुसन्धाता के समक्ष एक अन्य कठिनाई उत्पन्न होती है कि वर्धमान महावीर का बड़ा भाई नन्दिवर्धन कौन था ? यदि वह त्रिशला का बेटा था तो उसके बाद महावीर को त्रिशला द्वारा सन्तानहीन होने के कारण पोषण की युक्तिसंगत नहीं रहती। यदि महावीर वय: में नन्दिवर्धन से छोटे नहीं थे तो वह बात समझ में नहीं आ सकती। अर्थात् महावीर के सम्पोषण तक त्रिशला के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने देवनन्दा के पुत्र को स्वीकार किया। बाद में स्वयं उसके पुत्र उत्पन्न हो गया। निष्कर्ष रूप में हमें दो में से एक को चुनना होगा - (1) महावीर यदि देवनन्दा के गर्भ में आये तो वह ऋषभदत्त और देवनन्दा के ही पुत्र थे । त्रिशला और सिद्धार्थ के नहीं।

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