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242 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
पाचितिय के अनुसार राजा संस्कारपूर्वक क्षत्रिय कुल में से चुना जाता था। राजा पुरुषों में सर्वप्रथम समझा जाता था। अपने भुजबल द्वारा क्षत्रिय देश पर शासन करने का अधिकार रखते थे। राजा और उनके परिवार जन अनेक व्यसन करते थे जैसे मृगया, छूत, पान, स्त्रीसंग तथा युद्ध। कुछ क्षत्रिय आध्यात्मिक जीवन की पर्येषणा करने के पश्चात् संसार त्याग कर सिद्ध हो गये थे, जैसे उग्र, भोग, राजन्य, ज्ञातृ और इक्ष्वाकुक्षत्रिय कुल। ___ उत्तराध्ययन के नमि-शक्र सम्वाद से क्षत्रिय के कर्तव्यों पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। नमि के पुत्र को राज्य सौंप कर मुनि बन जाने पर मिथिला में कोलाहल आ जाता है और शक्र उनसे आग्रह करते हैं कि नमि पहले परकोटा, बुर्ज वाले नगरद्वार, खाई और शतधी०० यन्त्र बनवायें फिर मुनि बनें। प्रसाद, वर्धमानगृह 2
और चन्द्रशालाएं बनवायें और फिर मुनि बनें। बटमारों, प्राणहरण करने वाले लुटेरों, गिरहकटों और चोरों का निग्रह कर नगर में शान्ति स्थापित करें। जो राजा समक्ष नहीं झुकते उन्हें वश में करें, प्रचुर यज्ञ करें, श्रमण ब्राह्मण को भोजन कराये, दान दें, भोग करें। चांदी, सोना, मणि-मोती, कांसे के बर्तन, वस्त्र, वाहन और भण्डार की वृद्धि करें फिर मुनि बन जाएं।
गहवइ (वैश्य)
आगमकाल में वैश्यों को गहवइ अर्थात् गृहपति नाम से जाना जाता था। यद्यपि इस शब्द की सार्थकता उतनी नहीं रही थी। वैश्य समाज का सबसे सम्पन्न और समृद्ध अंग थे जिनका अर्थ व्यवस्था पर गहरा नियन्त्रण था।67 जैनसूत्रों में ऐसे अनेक गृहपतियों का उल्लेख है जो समणोपासक श्रमणोपासक थे।68
बुद्ध और महावीर के काल में ही भारतीय संस्कृति सर्वप्रथम द्रव्य के युग में अवतीर्ण हो रही थी। आर्थिक जीवन के द्रुतपरिवर्तन ने नए वर्गों को जन्म तथा गृहपतियों के उत्कर्ष में योगदान दिया। इनमें से कुछ कृषक थे। जो सर्वाधिक सम्पन्न थे वह श्रेष्ठि थे, जिन्हें पूंजीपति भी कहा जा सकता है। छोटे उद्योगधन्धों के लिए यह पूंजी और श्रम दोनों प्रदान करते थे। उद्योग, कृषि और वाणिज्य तीनों पर इनका अधिकार था। वणियग्राम के धनसंपन्न भूमिपति आनन्द गृहपति के पास अपरिमित हिरण्यसुवर्ण, गाय-बैल, घोड़ा, गाड़ी, वाहन आदि थे। पारासर कृषि कर्म में कुशल होने के कारण 'किसी पारासर' अर्थात् कृषि पाराशर नाम से विख्यात था। वह छ: सौ हलों का स्वामी था।" कुइयण्ण या कुविकर्ण के पास बहुत सी गाएं थी।2 गोसंती कुटुम्बी को अमीरों का स्वामी कहा गया है। उसका पुत्र अपनी गाड़ियों को घी के घड़ों से भरकर चम्पा में बेचने के लिए जाता था।4 भरत चक्रवर्ती का गृह रत्न सर्वलोग में प्रसिद्ध था। वह विविध धान्यों का उत्पादक