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224 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
वैदिक परम्परा के अनुरूप जैन दर्शन में जीवन मुक्ति का प्रत्यय स्वीकार किया गया है। उसमें जीवन्मुक्ति का तात्पर्य रागद्वेष से रहित अवस्था है। . जैन आचार परम्परा में नैतिक बुराई का आधार आसक्ति या राग को माना गया है। राग की उपस्थिति में द्वेष सहज ही प्रकट हो जाते हैं और इन्हीं अवस्थाओं से क्रोध, मान, माया और माह इन चार कषायों का प्रादुर्भाव होता है। इन कषायों से ऊपर उठकर चारित्रिक प्रगति के लिए जैन परम्परा में समत्व योग के सामायिक को दर्शन परम्परा का केन्द्रीय तत्व माना गया है। समत्व योग की उपलब्धि के लिए सम्यक्ज्ञान, सम्यक्दर्शन और सम्यक्चारित्र के त्रिविध साधना पथ का विधान किया गया है। जैन आचार की यह विशेषता है कि उसमें ज्ञान, कर्म और भक्ति श्रद्धा में से किसी एक को मोक्ष का साधन नहीं माना गया है वरन् तीनों के समन्वय पर बल दिया गया है। ___ जैन आचार दर्शन व्यावहारिक एवं सामाजिक जीवन में समत्व के संस्थापन के लिए भी अहिंसा, अनाग्रह अनेकान्त और अनाशक्ति के रूप में एक दूसरा त्रिविध मार्ग प्रस्तुत करता है। आचार में अहिंसा, विचार में अनाग्रह और वृत्ति में अनासक्ति यही जैन आचार का अन्तिम निष्कर्ष है। अनाग्रह अनेकान्त से वैचारिक संघर्ष एवं विषमताओं का निराकरण होता है तथा समन्वय की सृष्टि होती है।
उपसंहार
जैन आचार दर्शन की गीता और बौद्ध आचार दर्शन के साथ तुलना करने पर हमें ज्ञात होता है कि तत्व दर्शन और बाह्य नियमों सम्बन्धी कुछ मतभेदों को छोड़कर सामान्यतया उनमें विलक्षण साम्य परिलक्षित होता है। इन सभी का आचार सम्बन्धी मूलभूत दृष्टिकोण तो समान ही है। यदि आर्हत प्रवचन का अन्तिम निष्कर्ष राग-द्वेष का क्षय है तो गीता के उपदेश का अन्तिम हार्द आसक्ति का त्याग है
और बुद्ध की देशना का सार तृष्णा पर प्रहार है। इस प्रकार तीनों ही परम्पराओं के मूल तन्तुओं में कोई दूरी नहीं रह जाती है। अनासक्त, वीततृष्णा या वीतरागी जीवन दृष्टि का उदय ही इन सभी आचार दर्शनों का साध्य है।
जैन आचार शास्त्र में निरूपित आचार संहिता अत्यन्त व्यापक और विस्तृत है। उसमें प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक कोटि के व्यक्ति के अनुकूल आचरण का विधान किया गया है। उद्देश्य यह है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास हो और वह अपने मन के विकारों से क्रमश: निवृत्त होता जाये और संसार के प्रति उपशान्त होकर जीवन व्यतीत करे।
इस आचारशास्त्र की यह अनुपम विशेषता है कि यह कहीं भी कट्टर नहीं है। इसमें व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं उसकी व्यक्तिगत दुर्बलताओं का पूरा-पूरा ध्यान