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194 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
षट् आवश्यक
जैन मुनि के लिए कषायनिवृत्ति हेतु छ: आवश्यक कर्म निरूपित किये गये हैं:
(1) सामायिक (2) चतुर्विंशतिस्तव (3) वन्दना (4) प्रतिक्रमण (5) प्रत्याख्यान (6) कायोत्सर्ग
(1) सामायिक
चित्त की समावस्था को सामयिक कहा गया है। जीवन और मृत्यु के बीच समभाव, लाभ और हानि, वियोग और संयोग, शत्रु और मित्र, हर्ष तथा विषाद सभी विपरीत परिस्थितियों में समभाव रखना श्रमण का आवश्यक चरित्र माना गया।" श्रमण वही है जिसमें समत्व है जो अपने पराये के भेद से विरत है, जो पर स्त्री को माता के समान समझता है।
नियमसार के अनुसार अरण्यवास, काय: क्लेश, अनशन, स्वाध्याय और मौन से उस मुनि को क्या लाभ जिसमें समभाव नहीं है।2 ____ मूलाचार के अनुसार सामायिक हेतु वैराग्य, शास्त्रों के प्रति श्रद्धा, पापों से निवृत्ति, तीन गुप्ति, इन्द्रिय निग्रह, पवित्रता, लेश्याओं तथा इन्द्रिय सुखों से निवृत्ति, आर्त तथा रौद्र ध्यान से निवृत्ति तथा धर्म एवं शुक्ल ध्यान के प्रति श्रद्धा आवश्यक है। जब कि अनागार धर्मामृत ने आवश्यक सामायिक की छः श्रेणियां बताई हैं"4
(1) नाम : (2) स्थापना : (3) द्रव्य : (4) क्षेत्र (5) काल : (6) भाव :
अच्छे अथवा बुरे नामों से अनासक्ति। सुस्थापित अथवा विस्थापित वस्तुओं में अनासक्ति। शुभ अथवा अशुभ द्रव्य में अनासक्ति। अच्छे अथवा बुरे क्षेत्र में अनासक्ति। शुभ अथवा अशुभ काल में अनासक्ति। शुभ अथवा अशुभ विचारों में अनासक्ति।