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216 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति किया जाता अपितु स्नान, सुगन्ध, शारीरिक विभूषा, अलंकरण, तथा पापमय क्रियाओं का भी परित्याग होता है। श्रावक को इस उपवास के अन्तर्गत ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।229 उपवास के अन्तर्गत श्रावक को चिन्तन स्वाध्याय, निदिध्यासन, जिन एवं साधु स्तव तथा सम्यक चरित्र में प्रमाद रहित होना होता है। श्रावक को भूमि शयन करना होता है। पौषधोपवास के पांच अतिचार हैं
(1) अप्रत्यावेक्षित प्रमार्जितोत्सर्ग-प्राकृतिक उत्सर्ग में सावधानी।230 (2) अप्रत्यावेक्षित प्रमार्जिता दाननिक्षेपा-वस्तु के रखने उठाने में सावधानी।231 (3) अप्रत्यावेक्षित प्रमार्जिता संस्तर-संस्तारक, कुशा व कम्बल प्रमार्जन।232 (4) अनादर-आवश्यक करने में अनुत्साह।233 (5) स्मृत्यानुपस्थान–पौषधोपवास व्रत की विस्मृति–इससे चित्त की मग्न
एकाग्रता का भान होता है।234
(3) उपभोग-परिभोग-परिमाणवत
किसी वस्तु के उपयोग की मर्यादा को निश्चित करना उपभोग-परिभोग-परिमाण व्रत कहा जाता है। इस व्रत से अहिंसा एवं सन्तोष की रक्षा होती है। इससे जीवन में सरलता एवं सादगी आती है तथा व्यक्ति को महातृष्णा एवं महापरिग्रह से मुक्ति मिलती है।35 उपभोग का अर्थ है वस्तु केवल एक बार उपयोग में आती है जैसे भोजन, पेय, माला आदि। परिभोग का अर्थ है वस्तु का अनेक बार प्रयोग में आना जैसे संस्तारक, शैया, आभूषण, गृह इत्यादि।236 _इस व्रत के अन्तर्गत परिभोग की वह वस्तुएं आती हैं जिन्हें जीवन पर्यन्त त्यागना होता है। यह हैं-(1) मांस, मधु त्याग क्योंकि इनसे एक से अधिक इन्द्रियों वाले जीवों की हिंसा होती है। (2) मदिरा, अफीम आदि का सेवन, (3) उदुम्बर फल जैसे अदरक, मूली, गाजर, आलू, मक्खन आदि का त्याग, (4) यात्रा के अनुपयुक्त साधन रिक्शे, पालकी की सवारी आदि तथा अनुपयुक्त अलंकारों का त्याग, (5) पशु पक्षी आदि की खाल के बने वस्त्रों का परित्याग।
यही नहीं बहुत सी ऐसी वस्तुएं जो त्याजनीय हैं किन्तु जिनके परित्याग से गृहस्थ को असुविधा होती हो उन्हें भी कुछ समय के लिए त्यागना वांछनीय है। जैसे भोजन, सवारी, आरामदेह विस्तर, पान, वस्त्र, आभूषण, गायन-वादन आदि।37
समन्तभद्र के अनुसार इस व्रत के पांच अतिचार हैं238_
(1) विषयाविषतोनुप्रेक्षा–कामसुखों के विषय में अविवेक।