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जैन नीतिशास्त्र का स्वरूप • 191
(5) दंश-मशक-परीषह
डांस और मच्छरों का उपद्रव होने पर भी मुनि समभाव में रहे, क्रोध आदि का दमन करे। मांस और रक्त खाने पीने पर भी उनकी उपेक्षा करे किन्तु उनका हनन न करे।2
(6) अचेल परीषह
जिनकल्प दशा में अथवा वस्त्र न मिलने पर मुनि अचेलक भी होता है और स्थविर कल्प दशा में वह सचेलक भी होता है। अवस्था भेद के अनुसार इन दोनों को यति धर्म के लिए हितकर जानकार ज्ञानी मुनि वस्त्र न मिलने पर दीन न बने।
(7) अरि परीषह
एक गांव से दूसरे गांव में विहार करते हुए अकिंचन मुनि के चित्त में अरति उत्पन्न हो जाये तो उस परीषह को वह सहन करे।4
(8) स्त्री परीषह
स्त्रियां ब्रह्मचारी के लिए दलदल के समान हैं'-यह जानकर मेधावी मुनि अपने संयमी जीवन की घात न होने दे, किन्तु आत्मा की गवेषणा करता हुआ विचरण करे।
(9) चर्या परीषह
मुनि असदृश होकर विहार करे। परिग्रह ममत्व भाव न करे। गृहस्थों से निर्लिप्त रहे। अनिकेत गृहमुक्त रहता हुआ परिव्रजन करे।
(10) निषथा परीषह
राग-द्वेष रहित मुनि चपलताओं का वर्जन करता हुआ श्मशान, शून्यग्रह अथवा वृक्ष के मूल में बैठे। दूसरों को त्रास न दे।”