________________
___148 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
द्वैक्रिय
महावीर के मोक्षगमन के दो सौ अट्ठाईस वर्ष पश्चात् यह निन्हव हुआ। इसके प्रवर्तक आचार्य गंग थे तथा इनका स्थान उल्लुकातीर नामक नगर था। द्वैक्रियावादी एक ही क्षण में एक साथ दो क्रियाओं का अनुवेदन मानते हैं। मणिनाथ द्वारा उन्हें पुन: उद्बोधन मिला और वह भी प्रायश्चित लेकर पुन: संघ में सम्मिलित हो गये।
त्रैराशिक
यह लोग जीव, अजीव और नोजीव रूप त्रिराशि को मानते हैं। रोहगुप्त29 इस मत के प्रवर्तक हैं। यह निन्हव क्षुल्लकमुनि द्वारा पुरमंतरंजिका नगरी में उत्पन्न हुआ। इस मत के अनुयायी वस्तुविभाग तीन भागों में करते थे, जैसे जीव, अजीव और जीवाजीव।
अबाद्धिक
इस मत के अनुसार जीव अपने कर्मों से बद्ध नहीं है। गोष्ठामाहिल इस मत के प्रवर्तक हैं। जिनके द्वारा इस मत की स्थापना वीर निर्वाण से पांच सौ चौरासी वर्ष पश्चात् दशपुर में हुई थी। इस मत का मर्म यह है कि कर्म का जीव से स्पर्शमात्र होता है, बन्धन नहीं।330
इन प्रमुख सात निन्हवों के अतिरिक्त भी कुछ ही समय में जैन संघ के अन्य भेद हुए जो इस प्रकार हैं
बोटिक निन्हव
वीर निर्वाण के छ: सौ नौ वर्ष पश्चात् बोटिक निन्हव अर्थात् दिगम्बर संघ की उत्पत्ति मानी जाती है। दिगम्बर परम्परा में उपर्युक्त सात निन्हवों का तो कोई उल्लेख नहीं पाया जाता किन्तु श्वेताम्बर संघ की उत्पत्ति का स्पष्ट उल्लेख है।।
देवसेन ने अपने ग्रन्थ दर्शनसार332 में लिखा है कि विक्रमराज की मृत्यु के एक सौ छत्तीस वर्ष पश्चात् सौराष्ट्र देश के वलभी नगर में श्वेतपट श्वेताम्बर संघ उत्पन्न हुआ ऐसे कुल अठारह विषय हैं जिन्हें श्वेताम्बर सम्प्रदाय मानता है दिगम्बर नहीं मानता।33 यह हैं
(1) केवली का कवलाहार-अर्थात् केवलज्ञानी भोजन करते हैं और उन्हें रोग