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170 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
323. वही, पृ० 773। 324. वही, पृ० 7811 325. द्र० जैन धर्म का उद्गम और विकास, पृ० 30-31। 326. द्र० जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पृ० 651 327. आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, पत्र 405,406: द्र० ठाणं, पृ० 7751 328. सिन्क्ले यर स्टीवेन्सन, द हार्ट आफ जैनिज्म, पृ० 73। मुनि नथमल के अनुसार यह
निन्हव आचार्य आषाढ़ के शिष्यों द्वारा हुआ। 329. रोहगुप्त षडूलक के नाम से भी जाने जाते थे। यह त्रैराशिक मत के प्रवर्तक थे। कल्पसूत्र
एस०बी०ई० जि० 22, पृ० 290 के अनुसार यह तेरासिय आर्य महागिरि के शिष्य थे।
समवायांग की टीका के अनुसार वे गोशाल प्रतिपादित मत को मानते थे। 330. जैन धर्म का उद्गम और विकास, पृ० 31। 331. दर्शनसार, गाथा 11। 332. भारतीय इतिहास पत्रिका, जि० 15, भाग-3,4 पृ० 2021 333. द्र० डा० राजेश्वरप्रसाद चतुर्वेदी, जैन धर्म, पृ० 66। 334. देवसेन, भावसंग्रह, गाथा 53-701 335. देवसेन सूरि की कथा में दुर्भिक्ष के समय वलभी नगरी में गए हुए साधुओं का दुर्भिक्ष के
कारण पात्र, कम्बल आदि ग्रहण करना बतलाया गया है। किन्तु हरिषेणकृत कथा में पहले अर्धफालक सम्प्रदाय की उत्पत्ति बताई गयी है। अर्थात् शिथिलाचारी साधु बायें हाथ पर वस्त्र खण्ड लटका कर आगे कर लेते थे, जिससे नग्नता का आवरण हो जाता था। पीछे वलभी नगरी में उन्होंने पूरा शरीर ढकना शुरू कर दिया और कम्बल आदि रखने लगे। देवसेन की कथा के उक्त अंश तथा हरिषेण की कथा का अर्धफालक वाला अंश
बुद्धिग्राह्य है तथा मथुरा से प्राप्त पुरातत्व से भी इसका समर्थन होता है। 336. जायसवाल तथा बनर्जी, एपिग्राफिका इण्डिका, जि० 20, पृ० 801 337. जर्नल आफ विहार ओरिएन्टल सोसायटी, जि० 4, पृ० 338,390 तथा जि० 13 पृ०
233। इस अभिलेख के वाचन में अन्तर है किन्तु निरूपण में नहीं है। 338. हेनरिरवजिमर, दी फिलासफीज आफ इण्डिया, उद्धृत, ज्योति प्रसाद जैन, रिलीजन एण्ड
कल्चर आफ जैनज, पृ० 168। 339. वही, पृ० 1691 340. जैनी, जे०, आउट लाइन्स आफ जैनिज्म, कैम्ब्रिज, 1916। द्र० जयप्रकाश सिंह,
आस्पेक्ट्स आफ अर्ली जैनिज्म एज नोन फ्राम पृ० 26। 341. हिस्ट्री आफ जैन मोनैकिज्म, पृ० 211-12। 342. उत्तरज्झयणाणि सटिप्पण, पृ० 1451 343. मुनि केशों को हाथों से नोच डाले, इसके हेतु हैं -
(1) केश होने पर अप्तकाय जीवों की हिंसा होती है। (2) भीगने से जुएं उत्पन्न होती हैं। (3) खुजलाता हुआ मुनि उनका हनन कर देता है। (4) खुजलाने से सिर में नखक्षत हो जाते हैं। (5) यदि कोई मुनि क्षुर उस्तरे या कैंची से बालों को काटते हैं तो आज्ञा भंग का दोष
होता है। (6) ऐसा करने से संयम और आत्मा दोनों की विराधना होती है।