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146 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
संघभेद
विचार का इतिहास जितना पुराना है लगभग उतना ही पुराना विचार भेद का इतिहास है। तीर्थंकर वाणी जैन संघ के लिए सर्वोपरि प्रमाण है। वह प्रत्यक्षदर्शन है इसलिए उसमें तर्क की कर्कशता नहीं है। वह तर्क से बाधित भी नहीं है। वह सूत्र रूप में है। उसकी व्याख्या में तर्क का लचीलापन आया है। भाष्यकार और टीकाकार प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे। उन्होंने सूत्र के आशय की परम्परा को समझा। यदि हृदयंगम नहीं हुआ तो युक्ति और जोड़ दी। लम्बे समय में अनेक सम्प्रदाय बन गये। दिगम्बर और श्वेताम्बर जैसे शासन भेद हुए। महावीर के समय श्रमण वस्त्र धारण करते थे, कुछ नहीं भी करते थे। भगवान स्वयं वस्त्र नहीं पहनते थे। वस्त्र पहनने से मुक्ति होती है या वस्त्र नहीं पहनने से मुक्ति होती है, यह दोनों तर्क गौण हैं। मुख्य है रागद्वेष से मुक्ति। जैन परम्परा का भेद मूलतत्वों की अपेक्षा गौण प्रश्नों पर अधिक टिका है।
गोशालक जैन परम्परा से सर्वथा अलग हो गया था इसलिए उसे निन्हव नहीं माना गया।21 स्थानांगसूत्रानुसार दिगम्बर और श्वेताम्बर संघ भेद होने तक जैन संघ में सात निन्हव भेद हो चुके थे।322 __आवश्यक नियुक्ति के अनुसार इनमें से दो भगवान महावीर के जीवन काल में कैवल्य प्राप्ति के बाद तथा पांच उनके निर्वाण के बाद हुए।323
सात निन्हव इस प्रकार हैं
निन्हव
धर्माचार्य
नगर
समय
(1) बहुरत जमाली श्रावस्ति महावीर केवल्य प्राप्ति के 14 वर्ष बाद। (2) जीवप्रादेशिक तिष्यगुप्त ऋषभपुर केवल्य प्राप्ति के सोलह वर्ष बाद। (3) अव्यक्तिक आषाढ़ श्वेतिका निर्वाण के 214 वर्ष बाद। (4) सामुच्छेदक अश्वमित्र मिथिला निर्वाण के 220 वर्ष बाद। (5) द्वैक्रिय गंग उल्लुकातीर निर्वाण के 228 वर्ष बाद। (6) त्रैराशिक षडूलक अन्तरंजिका निर्वाण के 544 वर्ष बाद।
(रोहगुप्त) (7) अबद्धिक गोष्ठामाहिल दशपुर निर्वाण के 584 वर्ष बाद।
इन सात निन्हवों में जमाली, रोहगुप्त तथा गोष्ठामाहिल तीनों अन्त तक अलग रहे। भगवान के शासन में पुन: सम्मिलित नहीं हुए। शेष चार पुन: शासन में आ गये।324