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जैन संघ का स्वरूप • 151
राजा को बहुत कौतुहल हुआ कि यह न तो नग्न है न वस्त्रवेष्टित। तब राजा ने संघ से प्रार्थना की कि या तो साधु निर्ग्रन्थता अंगीकार कर लें अथवा ऋजुवस्त्र में विहार करें। उस दिन से काम्बल तीर्थ का प्रवर्तन हुआ।
यापनीय संघ
दक्षिणापथ स्थित सावलिपत्तन में काम्बल सम्प्रदाय से यापनीय संघ उत्पन्न हुआ। कलिंगराज खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख से ऐसा ज्ञात होता है। जायसवाल के अनुसार यही इतिहास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण सूचना है। वह कहते हैं कि यापज्ञापक याज्ञापका: यापों के शिक्षक क्षेत्र के बिना जैन धर्म का इतिहास समीकृत नहीं किया जा सकता।36_ __भद्रबाहुचरित में भद्रबाहु नामक आचार्य के तुरन्त बाद से जैन धर्म का इतिहास दिया गया है जो कि चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन हैं। भद्रबाहु चरित के अनुसार उनके अनेकों शिष्यों में से जो अपने शास्ता की अस्थियों की पूजा करते थे यापनीय संघ का उदय हुआ जिसने अन्ततः वस्त्रविहीन रहने का निश्चय किया। यापनसंघ प्रमुख रूप से दक्षिण में पल्लवित हुआ क्योंकि कर्नाटक अभिलेख में ज्ञापकों की प्रमुख रूप से चर्चा है।37
उपसंहार
जैनों के इस विचार में सत्यता है कि उनका धर्म अति पुरातन है। जिसकी प्राचीनता प्रागार्य होने के कारण विवाद का विषय है तथा जैन धर्म सभी धर्म और दर्शनों में सर्वप्राचीन है।38 पाश्चात्य विद्वान नोइलरेटिंग लिखते हैं कि सभी जीवित धर्मों में हम मौलिकता तथा गहनता का मिश्रण पाते हैं।39 जैन संघ की कुछ अपनी ही विशेषताएं थीं
(1) स्त्री संन्यास की अधिकारिणी
यद्यपि न्यूनाधिक रूप में जैन संघ में भी स्त्रियों के प्रति वही विचारधारा थी जो बौद्ध संघ में या ब्राह्मण संन्यास आश्रम में थी किन्तु फिर भी आध्यात्मिक क्षेत्र में सम्बोधि प्राप्ति का अधिकार उन्हें आरम्भ से ही मिल गया था।40 अतएव कहा जा सकता है कि जो ब्राह्मणधर्म में कभी नहीं हुआ, बुद्ध ने जिसे अन्य के आग्रह से अनिच्छापूर्वक स्वीकारा; वहीं जैन धर्म ने स्त्री को आरम्भ से ही प्रव्रज्या का अधिकार दिया।