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आगमकालीन धार्मिक एवं दार्शनिक विचार • 99
आदि के लिए द्र. दीर्घनिकाय, 3/9, पृ. 1501 273. सूत्रकृतांग (एस.बी.ई). 1/4/13। 274. उत्तराध्ययन, 7/26-27, पृ. 61। 275. सूत्रकृतांग (एस.बी.ई). जि.451 276. वही, 1/5/3,51 277. वही, 1/5/61 278. वही, 1/5/71 279. उत्तराध्ययन, 19/491 280. वही, 19/50: तुल. सूत्रकृतांग 1/5/101 281. सूत्रकृतांग, 1/5/13, तुल. उत्तराध्ययन, 19/57। 282. वही, 1/5/201 283. वही, 1/5/2/41 284. वही, 1/5/2/51 285. वही, 1/5/2/0, 121 286. उत्तराध्ययन, 19/681 287. उत्तराध्ययन, 19/49 तुल. सूत्रकृतांग, 1/5/7, शीलांक के अनुसार इस नदी का पानी
पीब तथा गर्म रक्त का होता है। 288. सूत्रकृतांग, 1/5/2/2 तुल. उत्तराध्ययन, 19/62। 289. वही, 1/5/2/31 290. वही, 1/5/2/171 291. वही, 1/5/141 292. उत्तराध्ययन, 19/661 293. वही, 19/531 294. वही, 19/561 295. वही, 19/581 296. सूत्रकृतांग, 1/5/2/61 297. वही, 1/5/111 298. उत्तराध्ययन, 19/601 299. वही, 19/731 300. वही, 18/46: सटिप्पण, पृ. 147-48। 301. वृहद्वति, पत्र 4591 302. परमधार्मिक देवताओं के कार्य उत्तराध्ययन में हैं किन्तु नाम नहीं है। विशेष वर्णन के लिए
देखें-समवायांग, समवाय 15, वृत्ति पत्र 28, गच्छाचार, पत्र 64-651 303. उत्तराध्ययन, 19/69-701 304. कल्पसूत्र, महावीर का जीवन चरित। 305. उत्तराध्ययन, 20/451 306. सन्तान प्राप्ति के लिए विशेष द्रव्यों से मिश्रित जल स्नान को “कौतुक" कहा जाता है।
वृहद्वृति, पत्र 4791 307. मिथ्या आश्चर्य प्रस्तुत करने वाली मन्त्र तन्त्रात्मक विद्या को कुहेटक विद्या कहा जाता है।
यह इन्द्रजाल है। द्र.-उत्तराध्ययन सटिप्पण, पृ. 1541