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110 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति साठ वर्ष का होने पर श्रमण निर्ग्रन्थ जाति स्थविर होता है। स्थानांग और समवायांग का धारक श्रमण निर्ग्रन्थ श्रुत स्थविर होता है तथा बीस वर्ष से साधुत्व पालने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ पर्याय स्थविर होता है।
स्थविर का अर्थ है ज्येष्ठ। वह जन्म, श्रुत, अधिकार, गुण आदि अनेक सन्दर्भो में ज्येष्ठ होता है। ग्राम, नगर और राष्ट्र की व्यवस्था करने वाले बुद्धिमान, लोकमान्य और सशक्त व्यक्तियों को क्रमश: स्थविर, नगर स्थविर
और राष्ट्र स्थविर कहा जाता है। धर्म का उपदेश देने वाला प्रशास्ता स्थविर होता है। कुल स्थविर, गण स्थविर और संघ स्थविर क्रमशः कुल, गण और संघ की व्यवस्था देखते थे।
जिस व्यक्ति पर शिष्यों में अनुत्पन्न श्रद्धा उत्पन्न करने और उनकी श्रद्धा विचलित होने पर उन्हें पुन: धर्म में स्थिर करने का दायित्व होता है वह स्थविर कहलाता है।
व्यवहार भाष्य के अनुसार जाति स्थविरों के प्रति अनुकम्पा, श्रुत स्थविर की पूजा और पर्याय स्थविर की वन्दना करनी चाहिए।
गणि
गणि का सामान्य अर्थ होता है, गण का अधिपति। जिसका गण हो वही गणि है 'गणोयस्य अस्तिति'74 मुनि श्री नथमल के अनुसार छोटे-छोटे गणों का नेतृत्व गणि का कार्य था।5 गणि से प्रमुखत: जिन गुणों की अपेक्षा की जाती थी वह नैतिक गुण थे। उसे आठ प्रकार की गणि सम्पदा में निष्णात होना पड़ता था :
(1) आचार सम्पदा - संयम की समृद्धि, (2) श्रुत सम्पदा - श्रुत की समृद्धि, (3) शरीर सम्पदा - शरीर का सौन्दर्य, (4) वचन सम्पदा - वचन कौशल (5) वाचना सम्पदा - अध्यापन पटुता, (6) मति सम्पदा - बुद्धि कौशल, (7) प्रयोग सम्पदा - वाद कौशल, (8) संग्रह परीक्षा - संघ व्यवस्था में निपूर्णता।
गणधर
आगम साहित्य में गणधर शब्द मुख्यत: दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है-तीर्थंकरों के