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122 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
(6) जो दुःखशील नहीं होता, - (7) जो क्रोध नहीं करता, तथा (8) जो सत्य में रत रहता है।
बहुश्रुतता का प्रमुख कारण है विनय। जो व्यक्ति विनीत होता है उसका श्रुत फलवान होता है। स्तब्धता, क्रोध, प्रमाद और रोग एवं आलस्य यह पांच शिक्षा के विघ्न हैं।।66 इनकी तुलना योग मार्ग के नौ विघ्नों से होती है। 67
ब्रह्मचर्य को वैदिक, बौद्ध और जैन तीनों ही परम्पराओं में शिष्य के लिए आदर्श समझा जाता था। शिष्य से अपेक्षा की जाती थी कि वह विभूषा का वर्जन करे और शरीर की शोभा बढ़ाने वाले केश. दाढी आदि को श्रृंगार के लिए धारण न करे।।68 यही कारण है कि जब जैन संघ में प्रवेशार्थी को यह ज्ञात हो जाता कि उसका प्रवेश निरस्त नहीं हुआ है, तब वह सभी भौतिक वस्तुओं को त्याग कर पूर्ण अपरिग्रह का पालन करते हुए मुण्डित शिर हो जाता था। भिक्षु बनने की प्रक्रिया में उसे सर्वप्रथम पंचमुट्ठिलोय करना होता था। ___ इस दिन के बाद से वह कभी भी अपने बाल गाय के बालों से अधिक नहीं बढ़ा सकता था। माह में दो बार उसे कैंची या उस्तरे से बाल मुंडवाने होते थे।।69 शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध इन पांच प्रकार के कामगुणों का उसे सदा वर्णन करना होता था।170
आत्मगवेषी शिष्य के लिए यह दश व्यवहार तालपुट विष के समान समझे . जाते थे।7। यह थे
(1) स्त्रियों से आकीर्ण आलय, (2) मनोरम स्त्रीकथा, (3) स्त्रियों का परिचय, (4) उनकी इन्द्रियों को देखना, (5) उनके कूजन, रोदन, गीत और हास्य युक्त शब्दों को सुनना, (6) मुक्त भोग और सहावस्थान को याद करना। (7) प्रणीत पान भोजन, (8) मात्रा से अधिक पान भोजन, (9) शरीर को विभूषित करने की इच्छा, तथा (10) दुर्जय कामभोग।
उत्तराध्ययनसूत्र में शिष्य के लिए विनय'72 अर्थात् आत्मानुशासन का प्रतिपादन किया गया है कि जो गुरु की आज्ञा का पालन करता है, गुरु की सुश्रुषा करता है, उनके इंगित और आकार को जानता है, वह विनीत शिष्य कहलाता है। 73 शिष्य