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जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
जाने वाली पहली आपत्ति यह है कि सुख-दुःख, प्रमोद तथा पीड़ा जैसे अनुभव शुद्ध रूप से मानसिक हैं इसलिए इनके कारण भी मानसिक या अभौतिक होने चाहिए। जैनों का उत्तर है कि यह अनुभव शारीरिक कारणों से सर्वथा स्वतन्त्र नहीं है क्योंकि सुख-दुःख इत्यादि अनुभव उदाहरणार्थ भोजन आदि से सम्बन्धित होते हैं। अभौतिक सत्ता के साथ सुख आदि का कोई अनुभव नहीं होता जैसे आकाश के साथ। 16. एस. गोपालन, जैन दर्शन की रूपरेखा, पृ. 151।
17. उत्तराध्ययन सूत्र, 33 / 181
18. द्र. एच. ग्लासेनैप, डाक्ट्रिन आफ कर्मन इन जैन फिलासफी,
19. द्र जैन दर्शन की रूपरेखा, पृ. 152-531
20. सूत्रकृतांग सूत्र, 1/2/1/4
21. वही, 1/7/41
22. वही, 1/2/3/181
23. आचारांगसूत्र, जैनसूत्रज, भाग-1, पृ. 31-341
24. सूत्रकृतांग, 1/5/1/261
T. 9-121
25. उत्तराध्ययन, 33/11
26. वही, 33/2-3 - इन कर्मों का निम्न स्वरूप है - 1 ज्ञानशक्ति का अवरोधक, 2 दर्शनशक्ति का अवरोधक, 3 शाश्वत सुख का अवरोधक, 4 मोह व राग का हेतु श्रद्धा एवं चारित्र का अवरोधक, 5 जन्म मरण का हेतु, 6 सुरूपता - कुरूपता, यश, कीर्ति, अपयश आदि का कारण 7 संस्कारी, असंस्कारी कुल व जाति का हेतु 8 आत्मशक्ति के विकास का अवरोधक, हानि लाभ का हेतु ।
27. उत्तराध्ययन, 32/71
28. आचारांग, 1/30/11
29. दशाश्रुतस्कन्ध, 5/14 30. वही, 5/151
31. उत्तराध्ययन, 33/251
32. सूत्रकृतांग, 1/15/7
33. औपपातिकसूत्र ।
34. जैकोबी, जैनसूत्रज, भाग-1, भूमिका ।
35. वही ।
36. एस. एन. दास गुप्त, हिस्ट्री आफ इण्डियन फिलासफी, खण्ड-1, पृ. 1201 37. जैनसूत्रज, भाग-1, पृ. 23-321
38. जैन दर्शन की रूपरेखा, पृ. 91
39. द्र पाण्डुरंग वामन काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-1, पृ. 264-651
40. द्र. जी. सी. पाण्डे, श्रमण ट्रेडीशन, पृ0 38
41. बी. एम. बरुआ, प्री बुद्धिस्टिक इण्डियन फिलासफी, पृ. 378
42. हिस्ट्री ऑफ धर्म शास्त्र, जि02, भाग 2, पृ. 930 तथा आगे ।
43. द्र बौद्धधर्म के विकास का इतिहास, पृ. 123 तुल. आर्यदेवकृत चतुःशतक जहां बुद्धधर्म का निरूपण अहिंसा द्वारा हुआ है तथा आचार्य अकलंक, तत्वार्थवार्तिक में इसे प्रधान बताते हैं।
44. जैन सूत्रज, भाग-1, भूमिका ।