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आगमकालीन धार्मिक एवं दार्शनिक विचार • 95
शून्यवादियों को क्रियावादी माना गया है। द्र. जैनसूत्रज भाग 2, पृ. 3171 173. वही, 1/12/81 174. सूत्रकृतांग, 1/6/27, पृ. 291। 175. द्र. बौद्धधर्म के विकास का इतिहास, पृ. 33। 176. सूत्रकृतांग, 1/6/27, पृ. 291। 177. वही, एस.बी.ई. जि. 45 1/1/2/5-23 पृ. 240-42: 1/12/2, पृ. 3161 178. सूत्रकृतांग 1/4/1/9-10, पृ. 2701 179. वही, 1/1/161 180. वही, एस.बी.ई. जि.45 1/2/148, पृ. 2411 181. चार कोटियां इस प्रकार हैं-अस्ति है, नास्ति नहीं है, अस्तिनास्तित्व-न है न नहीं हैं एवं
नास्ति च नास्ति न है न नहीं है। 182. द्र. बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ. 33। 183. सूत्रकृतांग एस.बी.ई. जि.45-2, 6/7, पृ. 4111 184. वही हेमचन्द्र जी महाराज 11, 6/1-251 आर्द्रकीय नामक छठे अध्ययन की प्रारम्भिक
पच्चीस गाथाओं में आर्द्रक मुनि का गोशालक के साथ वाद विवाद है। इनमें गोशालक ने भगवान महावीर की निन्दा करते हुए कहा है कि पहले तो वह त्यागी थे, एकान्त में रहते थे और मौन रहते थे लेकिन अब आराम से रहते हैं, सभा में बैठते हैं, मौन नहीं रहते। इस प्रकार के और भी आक्षेप गोशालक ने भगवान महावीर पर लगाये। आर्द्रक मुनि ने उनका प्रत्याख्यान किया। इस विवाद के मूल में कहीं भी गोशालक का नाम नहीं दिया गया है। नियुक्तिकार एवं वृत्तिकार ने इसका सम्बन्ध गोशालक के साथ जोड़ा है क्योंकि वादविवाद को पढ़ने से मालूम होता है कि पूर्वपक्षी पूर्णतया महावीर से पूर्णतया परिचित होना चाहिए। यह व्यक्ति गोशालक के सिवाय और कोई नहीं हो सकता। अत: गोशालक का
इस विवाद से सम्बन्ध जोड़ना निर्विवाद है। 185. मूलकार, नियुक्तिकार तथा टीकाकार सभी एकमत से इसे नियतिवाद कहते हैं। द्र.
सूत्रकृतांग हेमचन्द्र जी जि. 2, पृ. 251 186. सूत्रकृतांग-2, 6 आर्द्रकीय। 187. जैन साहित्य का वृहद इतिहास, पृ. 131। 188. द्र. बौद्धधर्म के विकास का इतिहास, पृ. 341 189. आयारो, शस्त्रपरिज्ञासूत्र 59, पृ. 62 तुल.ओवाइय सूत्र 111-113 और 136-1381 190. ए.एल. बाशम, हिस्ट्री एण्ड डाक्ट्रिन आफ आजीवकज, पृ.41 191. जैन ग्रन्थ, आचारांग, समवायांग, स्थानांग, सूत्रकृतांग, व्याख्या प्रज्ञप्ति, औपपातिक व
भगवतीसूत्र में इस मत की चर्चा मिलती है। द्र. स्टडीज इन दी भगवती सूत्र, पृ. 4251 192. यह छ: अभिजातियां थीं-लाभ, अलाभ, सुख, दु:ख, जीवन तथा मरण जिनसे सभी
जीवों का जीवन नियन्त्रित होता है। द्र. भगवती सूत्र, 15/1/5391 193. आजीवक मत के अनुयायी गोशाल और महावीर के साथ साथ रहने का उल्लेख भगवती
गुत्र 15 में आता है। आजीवक मत का जन्म गोशाल से 117 वर्ष पूर्व हुआ था। गोशाल आठ महानिमित्तों का ज्ञाता था। आर्यकालक ने आजीवक श्रमणों से निमित्त विद्या का अध्ययन किया था। द्र. स्टडीज इन दी भगवती सूत्र अ.7: मुनि नथमल, श्रमण भगवान
महावीर, पृ. 207: हिस्ट्री एण्ड डाक्ट्रिन आफ आजीवकज, पृ.54-551 194. आजीवकों पर द्रष्टव्य-स्टडीज इन दी ओरिजिन्स आफ बुद्धिज्म, पृ. 342-46: