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आगमकालीन धार्मिक एवं दार्शनिक विचार • 81
को भोजन कराने से सुगति गमन कैसे सुफल हो सकता है? एक तो मांस हिंसा के बिना मिलता नहीं, दूसरे वह स्वभाव से ही अपवित्र और रौद्रध्यान का हेतु है, रक्त आदि दूषित पदार्थों से परिपूर्ण होता है तथा अनेक कीड़ों का घर है। फिर मांस बहुत ही दुर्गन्धित, शुक्रशोणित से उत्पन्न है।230
जैन बौद्धों की आलोचना करते हुए कहते हैं कि कुछ मतवादी क्षणिक अस्तित्व वाले पंचस्कन्ध मानते हैं किन्तु यह व्याख्या नहीं करते कि आत्मा इनसे भिन्न है या स्कन्धमय है या स्कन्धजात है। न जो वह इसका कारण बताते हैं और न इसे शाश्वत बताते हैं।31 यह गानय232 सभी पदार्थों को क्षणभंगुर मानकर एकान्त अनित्य मानते हैं। इसी प्रकार सूत्रकृतांग में एक अन्य स्थान पर उल्लेख है कि कुछ मतवादी33 कहते हैं कि आनन्ददायक वस्तुओं से आनन्ददायक वस्तुएं उत्पन्न होती हैं।234 शीलांक इसे बौद्ध धर्म का पुष्टिमार्ग बताते हैं। किन्तु जैकोबी के लिए यह मत अज्ञात ही है। इस मत के अनुसार आनन्ददायक भोजन के उपरान्त,
आनन्ददायक आसन अथवा शय्या पर आनन्ददायक गृह में मुनि आनन्ददायक विषयों का चिन्तन करते हैं।
उल्लेखनीय है कि अक्रियावादी आत्मा का अस्तित्व नहीं मानते।235 अक्रियावादी को बौद्धों के क्षणिकवाद से समीकृत किया जाता है।36 आचार्य शीलांक इसे बौद्धमत का शून्यवाद मानते हैं। क्योंकि शून्यवादियों को क्रियावादी ही माना गया है।37 अन्धा व्यक्ति प्रकाश होने पर भी आंख से नहीं देख सकता वैसे ही अक्रियावादी उन्मार्गी होने से आत्मा की क्रिया नहीं देख सकते, यद्यपि उसका अस्तित्व है।238
शैव मत
सूत्रकृतांग में एक एकान्तवादी मत का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार पूर्णता केवल धर्म जीवन से ही मिल सकती है। यहां तक कि उससे अष्टसिद्धि व मनोवांछित की प्राप्ति हो जाती है।239
महाभारत
महाभारत का उल्लेख करते हुए जैनचिन्तक कहते हैं कि कुछ मतवादियों के अनुसार संसार सीमित है किन्तु शाश्वत है। पुराणकारों ने व्यास के इन्हीं विचारों का प्रसार किया है।240 इनके अनुसार परब्रह्म का ज्ञान भी सीमित है।241