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आगमकालीन धार्मिक एवं दार्शनिक विचार • 73 क्या है? इसका निर्माण किसने किया और कैसे हुआ? सूत्रकृतांग में कहा गया है कि यह लोक पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाशरूप पांच भूतों का बना हुआ है।209 इन्हीं के विशिष्ट संयोग से आत्मा का जन्म होता है और इसके वियोग से विनाश हो जाता है। पंच महाभूत किसी से उत्पन्न नहीं होते, किन्तु अनिर्मित और अनिर्मापित हैं, शाश्वत और अपुरोहित हैं अर्थात् इनको प्रेरित करने वाला कोई दूसरा नहीं है। काल तथा ईश्वर आदि अप्रत्यक्ष पदार्थों की कल्पना करना भी मिथ्या है।210 वास्तव में इसी लोक में उत्तम सुख भोगा जाता है, यही स्वर्ग है तथा भयंकर रोग, शोक आदि पीड़ाएं भोगना नरक है, इससे भिन्न स्वर्ग या नरक कोई लोक विशेष नहीं है। अत: स्वर्ग लोक की प्राप्ति के लिए नाना प्रकार की तपस्या करना, व्यर्थ कष्ट सहना शरीर को निरर्थक क्लेश देना तथा नरक के भय से इस लौकिक सुख का त्याग करना अज्ञान है, मूढता है। शरीर में जिस चैतन्य की अनुभूति होती है, वह शरीर रूप में परिणत पांच महाभूत का ही गुण है, किसी अप्रत्यक्ष आत्मा का नहीं। शरीर का नाश होने पर उस चैतन्य का भी नाश हो जाता है। अत: नरक या तिर्यन्च योनि में जन्म लेकर कष्ट सहन करने का भय अज्ञान है।
तज्जीव तच्छरीरवादी
इस वाद के अनुसार संसार में जितने शरीर हैं, प्रत्येक में एक आत्मा है। शरीर की सत्ता तक ही जीव की सत्ता है। शरीर का नाश होते ही आत्मा का नाश हो जाता है। यहां शरीर को ही आत्मा कहा गया है। इसमें बताया गया है कि परलोक गमन करने वाला कोई आत्मा नहीं है। पुण्य और पाप का कोई भी अस्तित्व नहीं है। इस लोक के अतिरिक्त और कोई दूसरा लोक भी नहीं है।11
तज्जीव तच्छरीरवादी कहते हैं कि कुछ लोगों के अनुसार शरीर अलग है और जीव अलग हैं। वे जीव का आकार, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श आदि कुछ भी नहीं बता सकते। यदि जीव शरीर से पृथक होता है तो जिस प्रकार म्यान से तलवार, मूंज से सींक तथा मांस से अस्थि अलग करके बताई जा सकती है, उसी प्रकार आत्मा को भी शरीर से अलग करके बताया जाना चाहिए। इस मत के अनुसार जीव और शरीर एक ही हैं तथा पांच भूतों से चेतना का जन्म होता है। अत: यह वाद भी चार्वाकवाद से मिलता-जुलता ही है।12 इस प्रकार के वाद का वर्णन प्राचीन उपनिषदों में भी उपलब्ध होता है।
तज्जीव तच्छरीरवादी मानते हैं कि तलुओं से लेकर केशाग्र मस्तक तक जो शरीर दिखाई देता है वही जीव है। इस शरीर से भिन्न जीव या आत्मा नाम का कोई पदार्थ नहीं है। शरीर और जीव वस्तुत: एक हैं, शरीर के मरने के साथ ही