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जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन • 41
109.वैदिक साहित्य में अंग के अर्थ हैं वेदों के अध्ययन में सहायभूत विविध विधाओं के ग्रन्थ, किन्तु जैन आगम में अंग सहायक या गौण ग्रन्थ नहीं, किन्तु बारह अंगों से श्रुत पुरुषा अंग कहे गये हैं- द्र० डाक्ट्रिन आफ दी जैनज, पृ० 731
110. जैनसूत्रज, जिल्द 22, पृ० 461
111. विन्टरनित्स, पूर्वोक्त, भाग-२, पृ० 442 तथा कार्पेन्टियर, उत्तराध्ययन, परिचयात्मक, पृ० 26-271
112. कार्पेन्टियर, पूर्व, पृ० 41 ।
113. विन्टरनित्स, पूर्व०, भाग 2, पृ० 4421
114. विचारों की तथा अभिव्यक्ति की यह जटिलता अमिधर्म से तुलनीय है।
115. वही, पृ० 4371
116.स्टडीज इन दी ओरिजिन्स आफ बुद्धिज्म, पृ० 5701
117. वही
118.द्र० ए हिस्ट्री आफ इण्डियन लिट्रेचर, पृ० 435 पाद टिप्पण ३ ।
119. वीरनिर्वाण और जैन कालगणना, पृ० 64 1
120. स्टडीज इन दी ओरिजिन्स ऑव बुद्धिज्म पृ० 5691
121. धवला, प्रस्तावना पृ० 21
122.हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग 2, पृ० 461।
123.सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, जिल्द 22, पृ० 47. हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग
2, पृ० 4321
124. वही, पृ० 48
125. आवश्यक निर्युक्ति 777, कैनोनिकल लिटरेचर आफ दी जैनस, पृ० 361
126. ए हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग-2, पृ० 462 631
आचार्य हरिभद्र केवल उत्तराध्ययन, आवश्यक और दशवैकालिक को ही मूल सूत्र मानते हैं, शेष को नहीं । द्र० हरिभद्रसूरि वृत्ति, पृ० 327-28
प्रो० विन्टरनित्स ने उक्त तीन सूत्रों में पिण्ड निर्युक्ति को सम्मिलित कर मूल सूत्रों की संख्या 4 मानी है। विस्तार के लिए द्र० एच०आर० कापडिया - हिस्ट्री आफ दी कैनानिकल लिटरेचर आफ दी जैनस, पृ० 43 की पाद टिप्पणी ।
127. ए० हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, पृ० 464-651 128.अंगाणां किं सारो आचारो । – आचारांग निर्युक्ति ।
129.द्र० हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग 2, पृ० 437, उत्तराध्ययन कार्पेन्टियर, पृ० 37 तथा पी एल वैद्य, आचारांग की प्राचीनता पर लेख - उवासगदसाओ, पृ० 10, स्टडीज इन दी ओरिजिन्स आफ बुद्धिज्म, पृ० 570-711
130. जैकोबी, जैन सूत्रज, जि० 22, पृ० 401 131. श्रुबिंग, डाक्ट्रिन आफ दी जैनस । 132. तत्ववार्तिक, पृ० 721
133.षटखण्डागम पुस्तक 1, पृ. 99| कसाय पाहुड, भाग-1, पृ० 112; सैक्रेड बुक्स आफ
ईस्ट, जि० 45, पृ० 183 पाद टिप्पण 6 के अनुसार प्रकल्प अर्थात आचारांगसूत्र में अब चौबीस अध्ययन हैं किन्तु कहा जाता है कि मूल में चार अध्ययन और भी थे। जैकोबी, जैनसूत्रज भाग-1 परिचयात्मक के अनुसार यहां चार व्याख्यान हैं- महापरिण्ण, उज्झया, अनुघिया तथा आरोवणा ।