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40 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
79. नन्दीसूत्र, 58; समवायांग सूत्र, 148। 80. जैसे पात्रविशेष के आधार से वर्षा के जल में परिवर्तन हो जाता है, वैसे ही जिन भगवान
की भाषा भी पात्रों के अनुरूप होती जाती है। -बृहत्कल्पभाष्य-1, 12041 81. बालस्त्री-मन्दमूर्खाणाम्, नृणां चारित्रकांक्षिणाम्।
अनुग्रहार्थ सर्वज्ञः सिद्धान्तः प्राकृते कृतः।। -दशवैकालिक टीका। 82. प्राकृत व्याकरण, 8/1/31 83. हेमचन्द्र, प्राकृत व्याकरण, 8/1/31 84. समवायांग सूत्र, 34/11 85. भगवती सूत्र, 5/4/201 86. भासारिया जे णं अद्धमागहाए भासाए भासंति। -प्रज्ञापना सूत्र, पृ० 561 87. मगदघविसयभासाणि बद्धं अद्धमागहं अट्टासदेशीमासाणिमयं वा अद्धभागह।-जिनदास
महत्तर कृत, निशीथचूर्णि। 88. प्राकृत व्याकरण, 8/1/3 89. ठाणांग, 7/48/101 90. निशीथचूर्णि। 91. उदाहरण के लिए भूत, भूय, उदग, उदय, उय, लोभ, लोह, उच्चारण के साथ परिवर्तित ___ होते गये। - जैनसूत्रज, जि० 22, परिचयात्मक, पृ० 11। 92. जैन साहित्य का इतिहास, प्रथम भाग, पृ० 3। 93. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 550। 94. दशवैकालिक, भूमिका, पृ. 17। 95. वही 96. जयधवला, भाग-1, पृ० 1541 97. धवला, पृ० 9, पृ० 259। 98. .....तथा सिद्धान्तस्य परमागमस्य सूत्ररूपस्य। सागारधर्मामृत टीका, माणिकचन्द्र
ग्रन्थमाला, काशी, अध्याय-7, श्लोक 501 99. सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, जिल्द 22, पृ० 38। 100.भगवतीसूत्रम्, 25 शतक-3। 101. नन्दीसूत्र, 41, द्र० हीरालाल रसिक लाल कापड़िया, ए हिस्ट्री आफ दी कैनोनिकल ___ लिट्रेचर आफ जैनज, पृ० 21। 102. जैन साहित्य की पूर्व पीठिका, पृ० 174 तथा पं० बेचरदास दोषी, जैन साहित्य का बृहद्
इतिहास, भाग-11 103. जैकोबी, जैन सूत्रज, भाग 1, भूमिका। 104. डाक्ट्रिन आफ दी जैनज, पृ० 35। 105.जैकोबी: सैक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, जि० 22, प्रस्तावना: मजूमदार और पुसालकर, दी
एज आफ इम्पीरियल यूनिटी, पृ० 423। कान्टियर उत्तराध्ययन, प्रस्तावना, पृ० 32 तथा
48 उन्हें ई० पृ० 380 और ईसवी सन् के आरम्भ होने के बीच का काल बताते हैं। 106.स्टडीज इन दी ओरिजिन्स आफ बुद्धिज्म, पृ०5691 107.चतुः शरण और भक्त परिज्ञा जैसे प्रकीर्णक जिनका उल्लेख नन्दी में नहीं है, वे इसमें
अपवाद हैं। ये ग्रन्थ कब आगमान्तर्गत कर लिए गये कहना कठिन है। 108.विन्टरनित्स पूर्वो. भाग 2, पृ० 450.