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46 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
है।' जो आत्मा है वही विज्ञाता है, जो विज्ञाता है वही आत्मा है। जिससे जाना जाता है कि वह आत्मा है और जानने की इस शक्ति से ही आत्मा की प्रतीति होती है। जैसे मैं दुख नहीं चाहता उसी प्रकार संसार का कोई भी जीव दुख नहीं चाहता।
स्वरूप की दृष्टि से हाथी और कुन्थुआ में आत्मा एक समान है। सुख-दुःख का कर्ता-अकर्ता आत्मा ही है। सदाचार में प्रवृत्त आत्मा मित्र है, दुराचार में प्रवृत्त आत्मा शत्रु है।" यह आत्मा ही वैतरणी नदी है। यही कूटशाल्मली वृक्ष है। आत्मा ही इच्छानुसार फल देने वाली कामधेनु है और यही आत्मा नन्दनवन है। हिरयन्ना का कथन है कि जैन धर्म का मुख्य लक्ष्य आत्मा को पूर्ण बनाना है न कि विश्व की व्याख्या करना। पूरा का पूरा जैन धर्म आस्रव और संवर ही है। शेष इसका विस्तार मात्र है। ___आत्मवाद के इस आधार पर जैन आचारशास्त्र का भवन निर्मित है किन्तु कर्म सिद्धान्त की विवेचना के बिना इस सिद्धान्त की व्याख्या अधूरी रह जाती है। आत्मा और कर्म इन्हीं दो तत्वों पर जैन धर्म का आचार पक्ष, विचार पक्ष, आध्यात्मिकता और नैतिकता टिकी हुई है।
जैन धर्म-सिद्धान्त
प्रत्येक जीव सुख की कामना करता है किन्तु अकाम्य होने पर भी उसे दुख भोगना पड़ता है। दुख का कारण है कर्म। कर्म, कृत है। यदि आत्मा अशुभ कर्म का कर्ता है तो वह उसके अशुभ परिणाम का भोक्ता भी अवश्य ही होगा। कर्मों से पूर्ण निरास ही मुक्ति है। कर्म सिद्धान्त में कर्मबन्ध के कारण कर्म के स्वरूप और उनसे मुक्ति के उपाय की मीमांसा की गयी है।
जैनसूत्रों में आत्मा के स्वरूप की व्याख्या करते हुए कहा है कि आत्मा अमूर्त है। अमूर्त होने के कारण वह इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है। अमूर्त होने के कारण ही आत्मा नित्य है। अज्ञान के कारण आत्मा कर्मबन्धन में आती है। यह कर्मबन्धन संसार का हेतु है।
चार्वाकों के अतिरिक्त सभी भारतीय दर्शन कर्म सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं। सामान्यतः कर्म सिद्धान्त का उदय मानव जीवन में घटित होने वाली विविध घटनाओं की व्याख्या करने वाले कार्यकारण सम्बन्ध से होता है। कर्म शब्द का सूक्ष्म अर्थ सभी मतों में भिन्न-भिन्न है। जैनेतर भारतीय दर्शनों में कर्म को क्रिया के अर्थ में लिया गया है, यद्यपि क्रिया शब्द के अर्थ भी विविध हैं। जैन दार्शनिक कर्म शब्द की सर्वथा भौतिक व्याख्या करते हैं। जैन दार्शनिकों के अनुसार इन्द्रियों द्वारा अगोचर अतिसूक्ष्म परमाणुओं के समूह का नाम कर्म है।।6