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68 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति क्रिया से या कार्यों से व्यक्ति निर्वाण प्राप्त कर सकता है।169 महावग्ग में जैनों को क्रियावादी बताया गया है।170
अक्रियावाद
अक्रियावाद के अनुसार आत्मा का अस्तित्व नहीं है। अक्रियावाद का समीकरण बौद्धों के क्षणिकवाद से किया जाता है।172 अक्रियावादियों के मत में सूर्योदय नहीं होता, न ही वह अस्त होता है। न पूर्णिमा होती है, न अमावस्या। न नदी बहती है न हवा चलती है। यह सारा संसार मिथ्या है।173 इस मत की आलोचना करते हुए जैन दार्शनिक कहते हैं कि अन्धा व्यक्ति प्रकाश होने पर भी आंख नहीं होने से रंग नहीं देख सकता वैसे ही अक्रियावादी उन्मार्गी होने से आत्मा की क्रिया नहीं देख सकते यद्यपि उसका अस्तित्व है।।74 ___ अक्रियावाद175 के प्रतिपादक पूरणकास्सप थे। इनका विश्वास था कि कुछ भी करने से पाप अथवा पुण्य नहीं होता। अक्रियावादियों को जैन आचार्य आदर से नहीं देखते।
अज्ञानवाद
अज्ञानवादी अप्रत्यक्ष विषय को निश्चित ज्ञान का अगोचर समझते थे। 76 सूत्रकृतांग के प्रथम अध्ययन के द्वितीय उद्देशक की छठी गाथा से जिस वाद की चर्चा आरम्भ होती है वह अज्ञानवाद है। नियुक्तिकार के अनुसार नियतिवाद के बाद क्रमश: अज्ञानवाद, ज्ञानवाद एवं बुद्ध के धर्म की चर्चा आती है। नियुक्तिकार निर्दिष्ट ज्ञानवाद की चर्चा चूर्णि अथवा वृत्ति में कहीं भी दिखाई नहीं देती। समवसरण नामक अध्ययन में जिन मुख्य चार वादों का उल्लेख है उसमें अज्ञानवाद का भी समावेश है। इस वाद का स्वरूप वृत्तिकार ने इस प्रकार बताया है कि अज्ञानमेव श्रेय: अर्थात अज्ञान ही कल्याण रूप है। अत: कुछ भी जानने की आवश्यकता नहीं है। ज्ञान प्राप्त करने से उल्टी हानि होती है, ज्ञान न होने पर बहुत कम हानि होती है। महावीर ने क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी और अज्ञानवादी सिद्धान्तों को समझकर अपना अनुशासन किया।।7
सूत्रकृतांग के अनुसार पार्श्वस्थ जिन्हें उचित अनुचित का विवेक नहीं है, ज्ञानोपदेश देते हैं किन्तु यह तो अन्धे का अन्धे को ज्ञान है क्योंकि उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि लोभ, मान, छल और क्रोध को त्याग कर ही कर्मों से मुक्त हुआ जाता है। इस सिद्धान्त को अज्ञानी हिंसक पशु के समान समझते नहीं हैं।।78 यह अयोग्य विधर्मी और अज्ञानी स्त्रीदास है। उनके अनुसार जिस प्रकार फोड़े को दबाना या