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जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन • 39
53. इन्हीं चौदह पूर्वों में से दो पूर्वों के दो अवान्तर अधिकारों से सम्बद्ध दो महान ग्रन्थराज दिगम्बर परम्परा में सुरक्षित हैं। दिगम्बर परम्परा के जैन साहित्य का इतिहास एक प्रकार से इन्हीं ग्रन्थराजों से आरम्भ होता है । - वही ।
54. आर० जी० भण्डारकर की रिपोर्ट, 1883-84, पृ० 124।
55. आवश्यक सूत्र, अध्याय 2, पृ० 1871
56. सी० जे० शाह, . जैनिज्म इन नदर्न इण्डिया, पृ० 221; हिस्ट्री आफ इण्डियन लिट्रेचर, भाग 2, पृ० 4321
57. इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द 17, पृ० 170, 280 एवं 286।
58. जायसवाल तथा बनर्ती, एपिग्राफिका - इण्डिका, जिल्द 20, पृ० 80-81।
59. उत्तराध्ययन सूत्र (कार्पेन्टियर) पृ० 14-15 इस परम्परा को अमान्य करते हैं। कार्पेन्टियर के
मत में दृष्टिवाद की पूर्ति असम्भव नहीं है । द्र० स्टडीज इन दी ओरिजिन्स आफ बुद्धिज्म, पृ० 567 - दिगम्बरों ने पाटलिपुत्र सम्मेलन में संकलित ग्यारह अंगों को प्रामाणिक मानने से इंकार कर दिया।
60. हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, भाग-2, पृ० 431-32 एवं 461।
61. जैकोबी, (जैन सूत्रज) भाग 1, प्रस्तावना ।
62. भगवती सूत्र (ललवाणी) जि० 1, पृ० 7।
63. उत्तराध्ययन सूत्र (कार्पेन्टियर) पृ० 31।
64. कार्पेन्टियर उत्तराध्ययनसूत्र में निरन्तर इसी आग्रह को लेकर चले हैं कि यदि कोई ग्रन्थ परवर्ती सिद्ध नहीं हुआ है तो उसे पूर्ववर्ती या प्रारम्भिक ही माना जाना चाहिए। उत्तराध्ययन सूत्र, पृ० 311
65. जैन आगमों में इसके विपरीत स्थिति है उनके अनुसार यदि कार्पेन्टियर के मत को स्वीकार कर लिया जाये तो इस बात की आशंका है कि हम बहुत से सिद्धान्तों को जो परवर्ती विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं उतना ही पुराना मान लेंगे - द्र० स्टडीज इन दी ओरिजिन्स आफ बुद्धिज्म, अपेन्डिक्स, पृ० 568; हिस्ट्री आफ इण्डियन लिट्रेचर, जिल्द 2, पृ० 432-351
66. एन आउट लाइन आफ दी रिलीजियस लिटरेचर आफ इण्डिया, पृ० 761
67. इण्डियन एन्टीक्वेरी, पृ० 286 1
68. जैन सूत्रज, भाग 1, पृ० 451
69. एन आउटलाइन आफ दी रिलीजियस लिटरेचर आफ इण्डिया, पृ० 761
70. सी० जे० शाह, जैनिज्म इन नदर्न इण्डिया, पृ० 230-31; कार्पेन्टियर, उत्तराध्ययन, भूमिका, पृ० 22-23, एपिग्राफिका इण्डिका, जि० 16, पृ० 282-2861
71. मुनि समदर्शी प्रभाकर, आगम और व्याख्या साहित्य, पृ० 171
72. पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका, पृ० 518-519।
73. इण्डियन एन्टीक्त्रेरी, जिल्द 17, पृ० 286 1
74. जैनसूत्रज, जिल्द 22, भूमिका, पृ० 6।
75. पं० दलसुख मालवणिया, आगम साहित्य की रूपरेखा, पृ० 10 1
76. उत्तराध्ययन सूत्र, कार्पेन्टियर भूमिका ।
77. पोत्थेसु छेप्पतएसु असंजमो भवइ । - दशवैकालिक चूर्णि, पृ० 21।
78. कालंक पुण पडुच्च चरणकरट्टा अवोच्छित्तिनिमितं च गेणइमाणस्स पोत्थए संजमो भवइ । — वही ।