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32 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति है। यह केवल एक परिशिष्टों का पिण्ड है। भारत के धार्मिक सम्प्रदायों का ज्ञान कराने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।6। इस अंग पर एक नियुक्ति, चूर्णि तथा शीलांक की संस्तुत टीका है। इस अंग का जर्मन भाषा में अनुवाद डा० जैकोबी ने किया है जिसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है। 62
उत्तराध्ययन मूलसूत्र
यह मूलवर्ग के अन्तर्गत परिगणित होता है। चूर्णिकालीन श्रुतपुरुष की स्थापना के अनुसार मूल स्थानीय चरण स्थानीय दो सूत्र हैं-1. आचारांग और 2. सूत्रकृतांग। परन्तु जिस समय पैंतालीस आगमों की कल्पना स्थिर हुई उस समय श्रुतपुरुष की स्थापना में भी परिवर्तन हुआ और श्रुतपुरुष की अर्वाचीन प्रतिकृतियों में दशवैकालिक और उत्तराध्ययन ये दो सूत्र चरणस्थानीय माने जाने लगे।
उत्तराध्ययन जैन परम्परा की गीता है। उत्तराध्ययन विभिन्न आध्यात्मिक, नैतिक एवं दार्शनिक दृष्टिकोणों का बड़ी गहराई से अध्ययन करता है। उत्तर शब्द के दो अर्थ होते हैं-पश्चात और किसी प्रश्न और जिज्ञासा का उत्तर। उत्तराध्ययन नियुक्ति के अनुसार इसका अध्ययन और पठन आचारांग के पश्चात् होता था इसलिए इसे उत्तराध्ययन कहते हैं। दूसरी परम्परा के अनुसार भगवान महावीर ने अपने निर्वाण से पूर्व अन्तिम वर्षावास में छत्तीस प्रश्नों का बिना पूछे उत्तर दिया था, उत्तराध्ययन उसी का सूचक है।163
रचनाकाल
नियुक्तिकार के अनुसार उत्तराध्ययन किसी एक कर्ता की कृति नहीं है। कर्तृत्व की दृष्टि से इसके अध्ययन चार वर्गों में विभक्त होते हैं। जैसे-1. अंग प्रभव-दूसरा अध्ययन 2. जिन-भाषित-दसवां अध्ययन, 3. प्रत्येक बुद्ध भाषित-आठवां अध्ययन और 4. संवाद-समुत्थित-नौवां तथा तेईसवां अध्ययन।
इस सूत्र के अध्ययन कब और किसके द्वारा रचे गये उसकी प्रमाणिक जानकारी के लिए साधनसामग्री सुलभ नहीं है। __कई विद्वान ऐसा मानते हैं कि उत्तराध्ययन के पहले अठारह अध्ययन प्राचीन है और उत्तरवर्ती अठारह अध्ययन अर्वाचीन है। किन्तु इस मत की पुष्टि के लिए कोई पुष्ट साक्ष्य प्राप्त नहीं है। यह सत्य है कि कई अध्ययन प्राचीन है और कई अर्वाचीन।।64
इसमें छत्तीस'65 अध्ययन हैं। चौथे अंग में इनके नाम आये हैं। ये वर्तमान उत्तराध्ययन के नामों से प्राय: मिलते-जुलते हैं। कान्टियर का विचार है कि