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जैन आगम साहित्य : ऐतिहासिक एवं सांस्कृातक अध्ययन • 13 में कि देवर्द्धि ने अंशत: मौखिक परम्परा के आधार पर आगमों को संकलित किया, पर्याप्त कारण है।64 गोविन्दचन्द्र पाण्डे के अनुसार संक्षेप में वर्तमान श्वेताम्बर सिद्धान्तों से यह ज्ञात होता है कि केवल कुछ ग्रन्थों को ही निश्चयपूर्वक प्राचीन कहा जा सकता है, ज्यादा से ज्यादा महावीर जितना।65
जे०एन० फरक्यूहर ने जैन आगमों के सम्बन्ध में लिखा है कि अंगों के द्वारा स्थापित समस्या बहुत ही जटिल स्थिति में है। उनकी भाषा मूल मागधी नहीं है जिसमें वह ईसा पूर्व तीसरी सदी में पाटलिपुत्र में संकलित किये गये थे, किन्तु उस पर पश्चिम का प्रभाव है। इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि संकलन काल से ही आगमों में विस्तृत रूप से परिवर्तन होते आये हैं।66
इस जटिल समस्या को सुलझाने के लिए आगमों का तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया गया। यह संभव है कि पाटलिपुत्र में कुछ अंग संकलित किये गये। किन्तु यह कोई नहीं कह सकता कि वर्तमान आगमों का उन मूल आगमों के साथ क्या सम्बन्ध है। वेबर का मत है कि वर्तमान आगम दूसरी और पांचवीं शताब्दी के बीचे रचे गये। किन्तु जैकोबी का सुझाव है कि उनका कुछ भाग पाटलिपुत्र से ही अपेक्षाकृत थोड़े से परिवर्तन के साथ आया है।68 फरक्यूहर को विश्वास है कि अधिक सम्भव यह है कि प्राचीन साहित्य अंशत: सुरक्षित रहा है। यद्यपि यह असंदिग्ध है कि संघ भेद के समय से अर्थात् ई० 80 से श्वेताम्बर साधुओं के द्वारा अपने सम्प्रदाय के अनुकूल उसमें संशोधन की प्रवृत्ति जारी रही। आगमों में श्वेताम्बरों की इस प्रवृत्ति के स्पष्ट चिह्न पाये जाते हैं।
वर्तमान में उपलब्ध आगम साहित्य मौलिक है भी या नहीं इसके सम्बन्ध में जैन साहित्य में दो परम्पराएं हैं-1. दिगम्बर विचारधारा और 2. श्वेताम्बर विचारधारा। दिगम्बर विचारधारा के अनुसार श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण के 683 वर्ष बाद आगम साहित्य का सर्वथा लोप हो गया। वर्तमान में उपलब्ध एक भी आगम मौलिक नहीं है। ___मुनि समदर्शी प्रभाकर के विचार में श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार आगम साहित्य का बहुत बड़ा भाग लुप्त हो गया परन्तु उसका पूर्णत: लोप नहीं हुआ। द्वादशांग में से एकादशअंग वर्तमान में विद्यमान है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि विभिन्न समयों में विभिन्न वाचनाओं में आगम साहित्य में कुछ परिवर्तन भी हुआ है। इतना होने पर भी हम यह नहीं कह सकते कि अंग साहित्य में मौलिकता का सर्वथा अभाव है। उसमें बहुत सा भाग मौलिक है और भाषा और शैली की अपेक्षा से प्राचीन भी है। इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आगम का मूलरूप वर्तमान में भी सुरक्षित है। ___पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री2 के मत में उपलब्ध आगम साहित्य के विषय में प्राप्त उल्लेखों से यह स्पष्ट रूप से विदित होता है कि वीर निर्वाण की दूसरी