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28 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
पद्यात्मक और कभी पद्यात्मक। 152 दूसरे श्रुत स्कन्ध में मुनि सम्बन्धी आचारों का ही विशेष रूप से कथन है । विन्टरनित्स का कथन है कि दूसरा श्रुत स्कन्ध प्रथम से बहुत अर्वाचीन है।' 53 यह बात उसकी चूला से प्रकट होती है। प्रथम दो चूलाओं में साधु और साध्वियों के दैनिक आचार का कथन है। तीसरी चूला में महावीर की जीवन है। स्कन्ध के अन्त में बारह पद्य हैं। जिनमें वर्णित विषय बौद्ध थेर गाथाओं का स्मरण कराते हैं। आचार सूत्र पर नियुक्ति है जिसे भद्रबाहु कृत कहा जाता है। एक चूर्णि और 976 ई० में लिखी हुई शीलांक की टीका है। आचारांग को सामायिक के नाम से जाना जाता है । 154
सूत्रकृतांग
सूत्रकृतांग ज्ञान, विनय, प्रज्ञापना, कल्प्या कल्प्य, छेदोपस्थापना तथा व्यवहार धर्म का कथन करता है। 155 साथ ही स्व समय का पर समय का, स्त्री सम्बन्धी परिमाण का, क्लीवत्व, अस्फुटत्व, कामावेश, विलास, रतिसुख और पुरुष की इच्छा करना आदि स्त्री के लक्षणों का कथन करता है। 156 एक सौ अस्सी क्रियावादी, चौरासी अक्रियावादी, सड़स अज्ञानवादी और बत्तीस वैनयिकवादी, इस तरह तीन सौ तिरेसठ मतों का खण्डन करके स्व समय की स्थापना करता है। इसमें छत्तीस हजार पद हैं। 57 वर्तमान सूत्रकृतांग में दो श्रुतस्कन्ध हैं- सूत्रकृतांग में द्रव्यानुयोग का निरूपण किया गया है। विश्व में वर्णित विविध दार्शनिक और धार्मिक मान्यताओं का इसमें उल्लेख करते हुए बतलाया गया है कि एकान्तपक्ष मिथ्या है और अनेकान्तपक्ष ही सत्य और युक्तिसंगत है।
आचारांग में मुख्यतया अहिंसा का निरूपण है तो सूत्रकृतांग में अपरिग्रह का महत्व बताया गया है। परिग्रह का बन्धन सबसे कठोर बन्धन है। इसे तोड़ने के लिए सूत्र के आरम्भ में कहा गया है
बुज्झिज्जति तिउटिटज्जा बन्धण परिजाणिया । किमाह बंधण वीरो किं वा जाणं तिउट्टई || 158
अर्थात् बोध प्राप्त करना चाहिए और परिग्रह को बन्धन जानकर उसे तोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए। इसी गाथा में ज्ञान और क्रिया का सामंजस्य प्रदर्शित किया गया है। विश्व में प्रचलित एकान्तवादी दर्शनों में से कोई दर्शन ज्ञान को ही महत्व देते हैं, क्रिया नहीं तो कोई दर्शन क्रिया को महत्व देते हुए ज्ञान का अपलाप करते हैं। दोनों ही मान्यताएं एकान्त और अपूर्ण हैं।