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प्रस्तावना
ज्ञानं पीनमिदं पराक्रमगुणस्तुङ्गो नयः कोमलो
रूपं कान्ततरं जयन्तनिभमो श्रीरायभूमीवर ॥ कामिरायको विजयवर्णीने पाण्ड्यवङ्गका भागिनेय बताया है । लिखा है
तस्य श्रीपाण्ड्यवङ्गस्य भागिनेयो गुणार्णवः ।
विट्ठलाम्बामहादेवीपुत्रो राजेन्द्रपूजितः ॥ इसमें सन्देह नहीं कि अजितसेन सेनगणके विद्वान् थे।
स्थितिकाल-डॉ. ज्योतिप्रसाद जैनने ऐतिहासिक दृष्टि से अजितसेनके समयपर विचार किया है। उन्होंने अजितसेनको अलंकारशास्त्रका वेत्ता कवि और चिन्तक विद्वान् बतलाया है।
अजितसेनने अलंकारचिन्तामणिमें समन्तभद्र, जिनसेन, हरिचन्द्र, वाग्भट और अर्हद्दास आदि आचार्योंके ग्रन्थोंके उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। हरिचन्द्रका समय दशम शती, वाग्भटका ग्यारहवीं शती और अहंद्दासका तेरहवीं शतीका अन्तिम चरण है। अतएव अजितसेनका समय तेरहवीं शती होना चाहिए । डॉ. ज्योतिप्रसादजीका अभिमत है कि अजितसेनने ईसवी सन् १२४५के लगभग शृंगारमंजरीकी रचना की है, जिसका अध्ययन युवक नरेश कामिराय प्रथम बंगनरेन्द्र ने किया और उसे अलंकारशास्त्रके अध्ययनमें इतना रस आया कि उसने ईसवी सन् १२५० के लगभग विजयकीर्तिके शिष्य विजयवर्णी से शृंगारार्णवचन्द्रिकाकी रचना करायी । आश्चर्य नहीं कि उसने अपने आदि विद्यागुरु अजितसेनको भी इसी विषयपर एक अन्य विशद ग्रन्थ लिखने की प्रेरणा की हो, और उन्होंने अलंकारचिन्तामणिके द्वारा शिष्यकी इच्छा पूरी की हो।
अहंद्दासके मुनिसुव्रत काव्यका समय लगभग १२४० ई. है। और इस काव्यग्रन्थकी रचना महाकवि पं. आशाधरके सागारधर्मामृतके पश्चात् हुई है। आशाधर ने सागारधर्मामृतको ई. सन् १२२८ में पूर्ण किया है। अलंकारचिन्तामणिमें आदिपुराणके उद्धरण आये हैं और आदिपुराणके रचयिता जिनसेनके समयकी उत्तरावधि आठ सौ पचास ईसवीके लगभग है। धर्मशर्माभ्युदयकी रचना नेमिनिर्वाण काव्यसे पूर्व हो चुकी है। और नेमिनिर्वाण काव्य वाग्भटालंकारका पूर्ववर्ती है। वाग्भटालंकारके रचयिता वाग्भट गुजरातके सोलंकी नरेश जयसिंह सिद्धराज ( ई. सन् १०९४-११४२ ई.) के समयमें हुए हैं। मुनिसुव्रत काव्यके रचयिता अर्हद्दास पं. आशाधरके समकालीन हैं। ये आशाधर जीकी सूक्तियों और सद्ग्रन्थोंके भक्त अध्येता थे और उन्हें गुरुवत् समझते थे। पं. आशाधर जीका निश्चित समय १२१०-४३ ईसवी है। अतः अर्हद्दासका समय भी ईसवी सन् १२४०-५० ई. के आस-पास निश्चित है।
___ आशाधर जीने सागारधर्मामृतकी रचना १२२८ ईसवी में पूर्ण की है। अतः मुनिसुव्रतकाव्यके रचयिता अर्हद्दासके काव्यग्रन्थोंके उद्धरण अलंकारचिन्तामणि में
१. शृगारार्णवचन्द्रिका, ज्ञानपीठ संस्करण, १०।१६।११७, पृ. सं. १२० । २. वही, ४१६ ।
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