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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ( बंभचेर वासो ) ब्रह्मचर्य आश्रम ( य ) और ( बंभचारी ) ब्रह्मचारी ( गुत्तीओ चेव ) तीन प्रकार की गुप्ति ( य ) और ( गुत्तिमंतो) तीन प्रकार की गुप्ति को धारण करने वाले ( मुत्तीओ चेव ) तथा बहिरंग अन्तरंग परिग्रह का त्याग ( य ) और ( मुत्तिमंतो ) बहिरंग अन्तरंग परिग्रह का त्याग करने वाले ( समिदीओ चेव ) तथा समिति ( य ) और ( समिदिमंतों ) समिति को धारण करने वाले, ( सुसमन्य-परसमय-विदु ) स्वसमय परसमय के ज्ञाता ( खंति ) क्षमा ( य ) और ( खंतिवंतो ) क्षमागुणधारक मुनि ( य )
और (खवगाय ) क्षपक श्रेणी पर चढ़ने वाले ( य ) और ( खीणमोहा ) दर्शनमोह और चारित्रमोह को क्षीण करने वाले ( य ) और ( रखीणवंतो ) क्षीणमोह गुणस्थानवा (य) तथा ( बाहियबुद्धा) दूसरों के उपदेश से संसार शरीर भोगों से विरक्त होने वाले बोधितबुद्ध ( य ) और ( बुद्धिमतो) कोष्ठबुद्धि आदि बुद्धि को धारण करने वाले ( य ) और ( चेइय-रुक्खा ) चैत्यवृक्ष ( च ) तथा ( चेइयापि ) कृत्रिम-अकृत्रिम आदि चैत्यालय ये सब ( मम ) मेरे लिये ( मंगलं ) मंगलदायक हों।
उल-मह-तिरिय-लोए, सिद्धायदणाणी- मस्सामि, सिद्धणिसीहियाओ, अट्ठावय-पख्यये, सम्मेदे, उज्जते, चपाए, पावाए, मज्झिमाए, हस्थिवालियसहाय, जाओ अण्णाओ काओ वि-णिसीहियाओ, जीवलोयम्मि, इसिपब्मार-तल-गयाणं, सिद्धाणं, बुद्धाणं, कम्म- चक्क. मुक्काणं, णीरयाणं, णिम्मलाणं, गुरु-आइरिय-उवज्झायाणं, पबतित्थेर-कुलयराणं, चउवण्णो य, समण-संघो य, दससु भरहेरावरासु, पंचसु महाविदेहेसु, जे लोए संति-साहको संजदा, तवसी एदे, मम मंगलं, पवित्तं, एदेहं मंगलं करेमि, भावदो विसुद्धो सिरसा अहि-वंदिऊण सिद्धे काऊण अंजलिं मत्थयम्मि, तिविहं तियरण सुद्धो।।
__ अन्वयार्थ-~-[ उ-मह-तिरिय-लोए ] ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक ( सिद्धायदणाणि ) सिद्धायतनों, सिद्ध प्रतिमा स्थित स्थानों को (णमस्सामि ) नमस्कार करता हूँ ( सिद्ध-णिसीहियाओ ) सिद्धों की निषिद्धिका अर्थात् निर्वाण स्थलों ( अट्ठावय-पन्चए ) अष्टापद कैलाश पर्वत पर ( सम्मेदे) सम्मेद-शिखर ( उज्जते ) उजयन्त/गिरनार पर्वत पर ( चंपाए ) चम्पापुरी ( पानाए ) पावापुरी ( मज्झिमाए ) मध्यमा नगरी