________________
विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका १११ ( कक्कस्सा ) कर्कश - सन्ताप उत्पन्न करने वाली भाषा कर्कशा / कक्कसा कहलाती है जैसे - तू मूर्ख हैं, कुछ नहीं जानता है इस प्रकार बोलना । ( कडुया) कटुक-दूसरों के मन में उद्वेग करने वाली भाषा है, जैसे- तू जातिहीन है, तू अधर्मी, धर्महीन, पापी हैं इत्यादि वचन कहना । ( परुसा ) परुषा अर्थात कठोर वाणी, मर्मभेदी वचन, जैसे- तू अनेक दोषों से दूषित है इत्यादि । ( णिङ्कुरा ) निष्ठुर भाषा । जैसे-तुझे मारूँगा, तेरा शिर काट लूँगा इत्यादि वचन । ( परकोहिणी ) परकोपिनी दूसरों को रोष उत्पन्न करने वाली परकोपिनी भाषा है, जैसे- तेरा तप किसी काम का नहीं हैं, तू हँसी का पात्र हैं, निर्लज्ज है, इत्यादि वचन । ( मज्झंकिसा ) मध्यंकृशा भाषा - इतनी निष्ठुर, कठोर भाषा जो हड्डियों का मध्यभाग भी छेद दे ( अईमाणिणी ) अतिमानिनी भाषा - स्वप्रशंसा और परनिंदा कर अपने महत्त्व को प्रसिद्ध करने वाली भाषा ( अणयंकरा ) अनयंकरी भाषासमान स्वभाव वालों में विच्छेद कराने वाली या परस्पर मित्रों में द्वेष, विरोध उत्पन्न करने वाली भाषा ( छेयंकरा ) छेदंकरी भाषा - वीर्य, शील आदि गुणों को जड़ से नाश करने वाली अथवा असद्भूतदोष अर्थात् जो दोष नहीं हैं उन्हें प्रकट करने वाली भाषा (च ) और ( भूयाणवहंकरा ) जीवों की वधकारी भाषा- जीवों के प्राणों का वियोग करने वाली भाषा ( इदि ) इस प्रकार ( दसविहाभासा ) दस प्रकार की भाषाएँ ( भास्सिया ) स्वयं बोली हों ( भासाविया ) दूसरों से बुलाई हो ( भासिज्जतो वि समणुमणिदो ) बोलते हुए दूसरों की मैंने अनुमोदना भी की हो ( तस्स ) उस भाषा समिति सम्बन्धी (मे) मेरे ( दुक्कडं ) दुष्कृत/ पाप (मिच्छा ) मिथ्या हो । हे भगवन्, भाषा समिति संबंधी मेरे पाप मिथ्या हो । एषणा समिति संबंधी दोषों की आलोचना
-
तत्थ एसणासमिंदी अहाकम्मेण वा, पच्छाकम्मेण वा, पुरा कम्मेण था, उदट्ठियडेण वा, णिहिड्डियडेण वा, कीडयडेण या, साइया, रसाड्या, संगाला, सघूमिया, अड़गिद्धीए, अग्गीव, छण्हं जीव- णिकायाणं विराहणं, काऊण, अपरिसुद्धं, भिक्खं, अण्णं, पाणं, आहारियं, आहारावियं, आहारिज्जतं वि समणुमणिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं । । ९ ।।
अन्वयार्थ - ( तत्थ एसणासमिदी ) उद्गमादि दोषो से रहित योग्य